प्यारे पाठको, मेरी यादों के पिछले भाग मे हमने देखा की, युके भाऊ, मै और आर आर तिनो मित्र सिताफलो के लिये बन मे गये थे. बिच रास्ते मे हमे बन का चौकीदार भी मिला था. बादमे जब मुझे सिताफल के पेड पर काला नाग दिखने पर मैने युके भाऊ को पेड से दुर हटा लिया था. फिर कभी सिताफल के बन मे न जानेकी कसम खाकर ही हम तिनो मित्र घर लौट आये थे.
आज हम तिनो मित्रो के साथ आगे घटी घटनाओ के बारेमे जानने की कोशिश करेंगे. हम तिनो मित्र कभी कभार बाहर गाँव के थियेटर मे पिक्चर देखने भी चले जाते थे. बहिरम के मेले मे भी गये थे. आर आर भाऊ, मॅटरनिटी लिव्ह पर गयी हुयी मास्टरनी के जगह पर गाँव मे ही तिन माह के लिये, टिचर बन गये थे. नोकरी मे बिझी होने से आर आर से हमारी मुलाखाते उन दिनो थोडी कम होती थी. परंतु मेरी और युके की मुलाखाते हो जाती थी. मेरा उसमे थोडा स्वार्थ भी था. मेरे किसी भी समस्या का हल मै युके से मिला लेना चाहता था.
अभी किराणा दुकान चलाते हुये युके को दो तिन साल बिते होंगे, तभी उनके सामने एक समस्या निर्माण हो गयी थी. किराना दुकान वे किराये की जगह मे चला रहे थे. मकान मालिक ने युके भाऊ को न बताते हुये मकान खाली कराने की नोटीस भेज दियी थी. उन दिनो युके मकान खाली करने के मनस्थिती मे नही थे. इस कारण उन्होने शहर के वकील से, नोटीस का जबाब मकान मालिक को भेज दिया था. (उसी समय के उस वकील से तिस - पैतिस साल बाद मेरे भी संबंध अच्छे खासे बन गये थे). युके की केस ग्रामीण की होनेसे, उनको दुकान की जगह छोडनी पडी थी. अब युके की स्थिती बहूतही बिकट सी हो गयी थी. उन्हे दुकान के लिये दुसरी कोई भी जगह नहीं मिल रही थी. आखिर मैने ही पिताजी से बात करके उनको हमारे "पांडे वाले" घर मे जगह दे दी थी. युके भाऊ ने उस "पांडे वाले" मकान मे किराने की दुकान और पोस्ट का ऑफिस दोनो शुरू कर दिये थे. अब युके भाऊ घरसे ही किराना माल बेचते थे और साथ साथ सुबह के वक्त पोस्ट ऑफिस का काम भी देख लेते थे.
युके भाऊ ने हमारे "पांडे वाले" मकान मे किराने की दुकान तो लगा लियी थी परंतु वहां नये ग्राहक बहूत ही कम आ रहे थे. इसी कारण युके ने गाँव के बाजार मे किराना माल बेचना शुरू कर दिया था. बाजार के दिन जो किराना बेचा जाता था, उसी के मुनाफे मे गुजरान करने की नौबत अब युके भाऊ पर आ गयी थी. क्योंकी सुबह मे पोस्ट का काम देखने से किराना की दुकान पर युके का दुर्लक्ष सा हो गया था. इसी वजह से उनके जो पुराने ग्राहक थे वे आना बंद हो गये थे. युके ने कुछ दिनो के बाद बाजार मे भी किराना बेचना बंद कर दिया था. अब उनका सब कुछ पोस्ट ऑफिस के पेमेंट पर ही निर्भर हो गया था. परंतु अब मेरे कामो के लिये युके के पास भरपूर समय मिला करता था. मुझे भी एक साथीदार की आवश्यकता पडने लगी थी. आगे की यादोंमे उनसे संबंधित बहूतसी रोचक घटनाये हम आपको बताते जायेंगे. कृपया आप यादों को ध्यान से पढते रहिये. हर दिन आपको नयी नयी रोचक घटनाये पढने को मिलते रहेंगी.
अब युके भाऊ को किराना दुकान से फुरसत हो गयी थी. और आर आर की मॅटरनिटी अवकाश की नोकरी भी समाप्त हो गयी थी. मै पढाई लिखाई वाला विद्यार्थी था. तिनो मित्र अब अच्छे फुरसती हो गये थे. एक बार हम मित्रो ने शाम के वक्त भजिये पार्टी का प्लॅन किया था. युके भाऊ ने भजिये के लिये फल्ली तेल देने को हाँ कहा था. बेसन का खर्च आर आर करने वाले थे और बाकी नमक मिर्ची मै घरसे देने वाला था. अब बात भजिये बनाने के लिये अचारी ढुंडने की थी. उसे भी हमने ढूंड कर प्लॅन पुरा करने के लिये राजी कर लिया था. अचारी को हमने भजिये का मटेरियल प्याज वगैरे काटकर बेसन तैयार करने को लगाया था. हम सब लोग अचारी को मामा कहकर पुकारते थे. मामा ने भजिये का मटेरियल तैयार करके रख लिया और युके भाऊ को भजिये के लिये फल्ली तेल लानेको कहा था. युके अंदरमे गये और एक बडे से जर्मन के पतिले मे फल्ली तेल लाकर मामा के सामने रख दिया था. मामा ने बिना कुछ सोचे हुये कढाई मे पूरा तेल डाला और भजिये तलना भी शुरू कर दिया था. उस समय हम तिनो मित्रो को अच्छी भुक लगी हुयी थी, खाना किसीने भी खाया नहीं था. उस वक्त "पांडे वाले" घर मे इलेक्ट्रिक लाइट नहीं थे. उजाले के लिये युके ने कंदील जला रखा था. कंदील के उजाले मे, भजिये तलकर कब तैयार होते है और हम को कब खाने मिलते है, इसी पर हमारी नजर लगी थी. आखिर मामा ने सब भजिये तैयार करने पर चारो के लिये चार प्लेटोमे भजिये परोस दिये.
हम तिनो मित्रो ने भजिये को मुँह मे डाला ही था की, तिनो को भजिये का स्वाद कुछ अजिबसा लगने लगा था. हमने मामा से भजिये खानेको कहा. मामा ने भजिये का स्वाद जब लिया तो मामा भी कुछ गडबडी हुये जैसा मुँह करने लगे थे. आर आर और मैने शंका आनेकी वजहसे भजिये खाना बंद कर दिया था. भजिये को लेकर मामा ने अपनी अनभिज्ञता जताई थी. आखिर मे मैने आर आर को कंदील से घरमे से फल्ली तेल का पिपा लाकर दिखाने को कहा. हमारे साथ युके भी थे. मेरे पास के टाॅर्च के उजाले मे मैने जब पिपे के अंदर मे बारिकी से देखा तो मै भौचक्का रह गया था. तेल के पिपे मे एक मरा हुआ बडासा चुहा पडा हुआ था. उस मरे चुहे को देख कर मुझे और आर आर का जी मचले जैसा हो रहा था. युके ने मात्र कुछ समझमे नही आनेकी बात कही थी. आखिर हम सबने मान लिया था की जो होना था सो हो गया था. आगे होने वाले बडे दुर्घटनासे हम सब लोग बच गये थे. हमारे लिये यही बहूत बडी बात थी. "जान बची लाखो पाये, घरके बुद्धू घर लौट आये." उस रात, घर के थंडे रोटी मे भजियो से भी जादा अच्छा स्वाद खाने मे मिला था.
To be continued.
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे.
परसापूर. (महाराष्ट्र)🙏🙏🙏
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)
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