पास के गाँव की मेरी पढाई :
(1957 से 60 के दरम्यान की घटनाये)
प्यारे पाठको, इसके पहले के भागमे हमने गाँव के स्कूल की मेरी पढाई कैसे हुयी यह देखा. अब हम पासवाले गाँव को पढने जाकर उस समय हमारे साथ कौनसी घटनाये घटी उन सबको याद करेंगे.
मैने गाँव के स्कूल मे कक्षा चार तक की पढाई करनेके बाद हमारे गाँव से दो कोस की दुरीपर के गाँव के स्कूल मे कक्षा पांच से आठ तक की पढाई की. हमारे गाँव मे तब कक्षा चार के बाद की कक्षाये नही थी. उस जमाने मे मेरे बडे भाई जो मुझसे अगली कक्षामे पढते थे, उनके साथ और चार बच्चे भी पढते थे. मेरे साथ पढनेवाले एक दो ही बच्चे थे. कक्षा पांच मे वह दोनोभी फेल होकर घर बैठ गये थे. मै पास होकर कक्षा छह मे गया और मेरे भाई के साथ के पढनेवाले दो बच्चे मेरे साथीदार बन गये थे.
कक्षा पांच से हमारी अंग्रेजी के सब्जेक्ट की पढाई शुरू हुयी थी. उसी तरह हिंदी भाषा की भी पढाई होती थी. कक्षा पांच मे हमे मराठी भाषा मे "मुलांचा श्रीकृष्ण " नामकी किताब पढाई मे थी. भगवान कृष्ण के जिवनी पर की संपूर्ण जिवन कथा उस किताब मे पढाई गयी थी. किताब शुरूसे आखिर तक पढते वक्त बडा ही आनंद आता था. लेकीन किताब के आखिर मे जब भगवान कृष्ण के अंत होनेका वर्णन भी लेखक ने उसी किताब मे बताया था तब मुझे बहूतही बूरा लगा था. उस वक्त भगवान श्रीकृष्ण के जिवनी का पढा हुआ इतिहास अभी तक मै भुला नही हूँ. क्योंकी भगवान श्रीकृष्ण के जिवनमे जो भी घटनाये हो गयी है उनसे हमारे लिये कुछ ना कुछ अच्छा संदेश ही मिला है. फिर भी उनके दुःखद अंत के पाठ ने मुझे बार बार चिंतन करने के लिये मजबूर किया है.
वहां के हमारे स्कूल मे 26 जनवरी को स्नेह संमेलन का आयोजन हर साल किया जाता था. रातमे भी कार्यक्रम रखे जाते थे. उस कार्यक्रम के लिये हमारे गाँव के कुछ बच्चों ने भी भाग लिया हुआ था. उनमे से हमारा एक साथी, कार्यक्रम के लिये शामके वक्त घरसे आ रहा था. तब उसके आँखो पर सामने से आनेवाले गाडी का लाइट पडनेसे उसे सामने का कुछ नही दिखा और वह गाडी के चक्केमे आ गया था. उसमे उसकी जान चली गयी. इस घटनाने हम बच्चों को बहूत बडा धक्का दिया था. हम बच्चे स्कूल के लिये हर रोज गाँव से पैदल ही जाते थे. हमारे साथी बच्चे की दुःखद घटना जिस जगहपर हुयी थी उस जगह के तरफ देखने पर हम लोगोंको उस साथी की याद आकर बडा ही दु:खद लगता था. डर भी लगता था.
हम सब बच्चे स्कूल जाने के लिये पैदल ही घरसे निकला करते थे. कभी कभार स्कूली बच्चों के प्रति दया रखने वाले प्रायव्हेट गाडी वाले भी हम बच्चों को स्कूल वाले गाँव फोकट मे ले जाते थे. लेकीन ऐसे गाडी वाले लोग बहूतही कम थे. उस जमाने मे सायकल का चलन भी बहूतही कम था.
To be continued....
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंग खनवे
परसापूर. (महाराष्ट्र)🙏🙏🙏
(प्यारे पाठको, हम एक विशेष घटना को लेकर कल फिर मिलेंगे.)
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