मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 17 (सतराह) : (सत्य घटनाओ पर आधारित): मेरे बडे पिताजी की बाडी और उसका व्यवस्थापन (मेरे बचपन की घटनाये) (Part Two)
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मेरे बडे पिताजी की बाडी और उसका व्यवस्थापन
प्यारे पाठको, इसके पहले हमने देखा की मेरे बडे पिताजी के बाडीमे हम दोनो भाई घोडे को पानी पिलाने ले जाते थे. कभी कभार मोट भी हकालते थे. इस प्रकार के काम करने मे हम दोनो भाईयो को आनंद मिलता था.
घोडे का काम सिर्फ बडे पिताजी को ही होता था. जब भी उनको बाकी खेतोमे जानेका काम होता तब वे घोडे पर सवार होकर ही खेतो मे से चक्कर मारकर आते थे. बाकी समय मे घोडा खल्लेमे ही बंधा रहता. हम दोनो भाईयो को घोडे पर बैठनेका शौक हो जानेसे हम उसके चारा पानी के तरफ विशेष ख्याल देते रहते थे. सुबह शाम दोनो टाइम घोडेको पानी पिलाने का पूण्य हम दोनो भाई कर ही लेते थे. साथ मे उसपर बारी बारी से सवार होकर उसे बाडीके चारो धुरेसे दौड लगाने लगाते. घोडे का भी मुड होता है. उसका मुड होनेपर ही वह हमे धुरेसे दौड लगाने मे साथ देता था. उसका मुड नही रहनेपर उसने कई बार जमिन पर गिरानेका काम भी किया था. तबसे ही हम दोनो भाई घोडे के चाल चलन परसे उसका मुड जानते रहते थे.
बडे पिताजी के ससुराल पक्ष के मेहमान हर साल कभी दिवालीमे तो कभी धुपकाले मे कोई ना कोई आते थे. उनमे बुजरूग मेहमान हो तो वे बाडी के खल्लेमे ही रातमे सोने जाते रहते थे. क्योंकी बडे पिताजी रातमे खलेमे ही पलंग पर सोते थे और हमारे जैसे छोटे या बडे बच्चे आये तो वे हम दोनो भाईयो के साथ दिनभर खेलकर रातमे हम लोगोके साथमे घरपर ही सो जाते थे. मेहमान बच्चे बाडी के धुरे पर की टायकल के पेडसे, बैल के जोड बनाकर खेला करते थे. हम दोनो भाई भी उन बच्चों के साथ बैल - बैल का खेल खेलते रहते थे. आज भी मुझे टायकल के बैलो का खेल याद है. परंतु खेलने के लिये हमारे पास बचपना नही है. अनायास ही मेरे मुँह से किशोर कुमार का गाया हुआ वह गीत निकल ही जाता है, "कोई लौटा दे मेरे, बिते हुये दिन"........
मेरे बडे पिताजी की बाडी बडे भाई साहाब के नामपर होनेकी बात बडे उनको मालूम थी. उसी की हिंमत पर आगे आगे बडे भाई साहाब के जिवनमे बडे बडे चढ उतार आये. इस बारेमे की चर्चा हमारे आगे के भागोमे आते ही रहेगी. अभी हमारे बचपन की यादोमे बाडीके खलेकी बात शुरू है. खल्लेमे हमारी चार बैलोकी जोडी, खंडीभर गाये, एक घोडा और कडबी, कुटार इतना सारा रखनेकी व्यवस्था होती थी. साथमे बडे पिताजी का पलंग वहां रखा ही रहता था. हमारे पास उस समय एक ऐसी गाय थी, जो रातभर लोगोंके खेतोमे चरकर सुबह होनेके पहले खलेके गेटपर आकर आरामसे बागुल करते हुये बैठी रहती थी. खेतोमे चरते वक्त वह किसी खेत मालिक को दिखती नही थी. परंतु चरती जरूर थी. उस गायने हमारा बाडा गायो बछडोसे भर दिया था. बाडेमे बहुतांश उसीके बाल बच्चों की भरमार थी. उसके जिवन काल मे की उसके चौथी पिढी को हमने देखा है. वह सब गायो की रानी थी. उसका शारिरीक बांधा मजबुत था. उसके सिंग हरिनी जैसे थे. इस कारण उसे हम "हरिनी गाय" कहकर पुकारते थे. उसकी उम्र होते आ रही थी. फिरभी उसकी रात को खेतोमे चरनेकी आदत गयी नही थी. ऐसे ही सुरूवाती बरसात के एक रातमे चरते वक्त उसके और हमारे दुर्दैव से हरिनी गाय का स्पर्श बिच खेतमेके इलेक्ट्रिक पोलसे हुआ और उसी क्षण उसके प्राण पखेरू उड गये. पानी की वजहसे उस पोलमे करंट आया हुआ था. सुबह जब हमे "हरिनी गाय" के बारेमे का दुःखद समाचार समझा तब हम सब छोटे बडोके आँखोमे पानी आये बिना नही रहा. हम सबकी प्रिय "हरिनी गाय" हम सबको छोडकर चली गयी थी. हम सबने दिलपर पथ्थर रखकर उसकी अंतीम क्रिया करके उसे बडे दुःखद मनसे बिदाई दियी. उस "हरिनी गाय" को हम सब आज तक भुला नही सके.
To be continued.....
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे.
परसापूर (महाराष्ट्र).🙏🙏🙏
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टिप्पणियाँ
ओम शांती शांती
जवाब देंहटाएंहरीनी गाय के लिए
ईश्वर उनकी आत्मा को शांती प्रदान करे