मेरी हायस्कूल की पढाई ......( Part Three )
(1960-62 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये)
प्यारे पाठको, इसके पहले मेरी यादों के माध्यम से हमने देखा की, मैने कक्षा नऊ के शुरूवाती दिनोमे स्कूल की पढाई छोडने का मन बना लिया था. परंतु गाँव के सरपंच साहाब ने मेरा मन परिवर्तन करने के बाद मैने फिरसे स्कूल जाना शुरू कर दिया था. फिर उसके बाद स्कूल मे क्या घटित हुआ यह हम मेरी यादों के माध्यम से जानने की कोशिश करेंगे.
जैसा की हमने देखा, मेरे स्कूल की गैर हाजिरी होनेसे नाराज हुये मेरे क्लास टिचर ने मुझे पिताजी से गैर हाजिरी के बारेमे अर्जी लिखवाकर लाने को कहा था. मैने हाँ कह दिया था. इधर मुझे पिताजी का भी डर लग रहा था. क्योंकी मैने अपने मनसे स्कूल की पढाई छोडने के बात से उनकी अंदर से नाराजी आ गयी थी. मै इस बात को माँ के माध्यम से जान गया था. मेरे निर्णय पर उन्होने कोई प्रतिक्रिया नही दियी थी. सो मैने पिताजी के डर के मारे, क्लास टिचर के नाम से, "खुदके हस्ताक्षर मे ही उनका लडका दस दिन बिमार होने से स्कूल मे नही आ सका, ऐसा लिखकर निचे पिताजी की सही (मेरे ही हाथ से) हुबेहुब करके दुसरे ही दिन क्लास टिचर को हाजिरी लेते वक्त अर्जी थमा दियी. क्लास टिचर सोचमे पड गये थे. उन्होने समझ लिया था की मैने ही अर्जी पर पिताजी की नकली सही कियी है. थोडा सोचने के बाद वे उनके जगह से उठे और उन्होने मुझे साथ लेकर प्रिन्सिपल साहाब के सामने खडा करके सब बाते बता दियी थी. प्रिन्सिपल साहाब की उस समय मे ख्याती थी की, उनके जैसा कडक शिस्त वाला इंसान अब तक उस स्कूलके इतिहास मे हुआ नहीं था. वे कभी किसी को भी बगैर हातमे छडी के दिखे नही थे. उनका नाम सुनकर ही बच्चे कापने लगते थे. ऐसे कडक इंसान के सामने मुझे खडा करने पर, शेर के सामने बकरी के खडे होने जैसी स्थिती, उस समय मेरी हो गयी थी. मै अंदर से बहूत ही डर गया था. मैने मन ही मन कसम खाली थी की, इसके बाद जिवनमे कभी कोई झुटा काम नही करूँगा और प्रिन्सिपल साहाब को पिताजी के सही के बारेमे पूरा सच ही बताऊंगा. सो मेरी बारी जब आयी तब मैने साहाब को सब सच्ची घटना विस्तार से बताने के बाद प्रिन्सिपल साहाब भी विचार मे पड गये थे. वे कभी मेरी तरफ तो कभी मेरे टिचर के तरफ देख रहे थे. मेरा मन हलका हो गया था. तब भी मुझे उनका डर लग ही रहा था. परंतु आगे जिवनमे ऐसा काम कभी नही करोगे इस बात की मेरे से हाँ लेनेपर उन्होने मुझे क्लास टिचर के साथ वापिस कक्षामे भेज दिया था. क्लास टिचर भी इस बातको लेकर अवाक् हो गये थे. वे कुछ बोले नही थे. क्लास मे आने के बाद सब बच्चे मेरी तरफ कुछ अलग निगाह से देख रहे थे. जब मैने उन्हे सब किस्सा सुनाया तो सब बच्चो का आश्चर्य का ठिकाना नही रहा. मै मन ही मन समझ गया था की, यह सब मेरे सच बोलने का ही चमत्कार हुआ है. तबसे क्लास के बच्चो मे मेरा होल्ड बनना शुरू हुआ था.
फिर तो मैने पढाई के बारे मे पिछे पलट के नही देखा. मै मन लगाकर पढाई करने लगा था. क्लास मे पहले बेंच पर बैठकर टिचर के हर सवाल के जवाब मे मेरा हात उपर ही रहता था.
हमारे समय मे स्कूल मे बच्चों को एक साल मे तिन बार परिक्षा देनी पडती थी. तिन माही, छह माही, बारा माही. सब परिक्षा ओ मे पास होना ही पडता था. अन्यथा अपना रेकाॅर्ड पहले तिन मे का नही बन सकता था. तिन माही परिक्षा देने के बाद मै गाँव चले जाता था. दिवाली मनाने के बाद जब नये से स्कुल खुलती तो पहले ही दिन हमारे तिन माही परिक्षा के बहूत से पेपर जाचकर टिचर हमे देते रहते थे और पेपर अच्छे से किसने लिखा यह भी बताते रहते थे. मेरा नंबर हर पेपर मे प्रथम या दुसरा ही आ रहा था. नागरिक शास्त्र की मॅडम ने पेपर बताते वक्त बहूत से बच्चों को डाटा भी था. जब मेरा पेपर सामने लाया गया था तब मॅडम ने मेरे पेपर को उत्कृष्ट के गिनती मे लगाया था. ऐसा क्या मैने लिखा था उस पेपर मे ? मुझे भी इस बात पर आश्चर्य हो रहा था. मैने उस पेपर मे सिर्फ मेरे खुदका निरिक्षण और देखी परखी बातो को ही लिखा था. तबसे मेरा क्लास मे होशियारी का डंका बजना शुरू हुआ था जिससे छोटे गाँव से आनेवाला मै भी कुछ करके दिखा सकता हूँ यह बात मुझमे पक्की होते जा रही थी.
To be continued........
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे.
परसापूर. (महाराष्ट्र) 🙏 🙏 🙏
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