"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें :- भाग 11 : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरे पिताजी टूरिंग टाॅकिज का काँट्रॅक्ट कैसे लेते थे ? (Part Two)

         मेरे पिताजी टूरिंग टाॅकिज का काँट्रॅक्ट कैसे लेते थे ? 

              प्यारे पाठको, कल हमने देखा की,  मेरे पिताजी टुरिंग टाॅकिज के काँट्रॅक्ट को लेकर उसका प्रबंध कैसे किया करते थे, यह जाना. पिक्चर शुरू होनेके बाद,  मै और पिताजी  दोनो प्रोजेक्शन केबिन  रूमके पास खुर्ची लगवा कर फिल्म देखा करते थे.  यह घटनाये  इ.स. 1954-55 के दरम्यान की घटी हुयी है. प्यारे पाठको उस जमाने की घटी घटनाओ को पढकर हमे थोडा अटपटा सा लग सकता है.   (क्षमस्व)
       वहां पर टाॅकिज का शो शुरू करने के एक घंटा पहले से ही फिल्मो के गाणे स्पिकर पर बजाने का रिवाज था और  बादमे फिल्म शुरू करने के पहले गणेश जी की आरती को बजानेका रिवाज भी चलते आ रहा था. इस कारण वहां के दर्शक गणेश जी की आरती लगने की ही राह देखा करते थे और बादमे थियेटर पर एक साथ दौडते हुये आकर भिड किया करते थे.  शो की तिकीट का मुल्य उस जमाने के हिसाबसे  सिर्फ चार आणा था. एक रूपये मे चार लोगोंका पिक्चर देखना हो जाता था. फिर भी उस समय चार आणे सामान्य दर्शको के लिये बहूत हुआ करते थे. क्योंकी उसी हिसाब से उनका इन्कम जो रहता था.  उस जमाने मे मजदूरी भी तो एक रूपये के आस पास ही हुआ करती थी. 
         हमारे गाँव के आस पास के परिसर मे उन दिनो पिताजी ने टुरिंग टाॅकिज का  काँट्रॅक्ट लिया है और वे हर रोज रातमे एक देड के दरम्यान बैल गाडी से बहूत सारी रकम साथ मे लेकर गाँव वापिस आते रहते है यह बात आसपासके एरिया मे फैल गयी थी. इस कारण डाका डालने वाले  लुटारू चोरो से बचने के लिये पिताजी और साथ के लोगोने रातमे गाँव वापिस आते वक्त आपसमे जोर शोरसे बाते करने का ठहरा लिया था.  ताकी  गाडीमे बहुत सारे लोग होनेका अंदाजा चोरो को लग सके. हम लोग साथमे कुल्हाडी और बडे लकडी के द॔डे भी रखने लगे थे. 
           फिर भी एक अंधेरी रात मे दो चोरोने बैलो के सामने आकर गाडीको रोक ही दिया.  रास्ता सुनसान देखकर गाडीवान को धमकाना शुरू कर दिया था. अंधेरी रातमे चोर कौन है यह भी किसी को दिख नही रहा था. दोनो चोरोने मुँह को ढक जो रखा था. गाडीवान भी कम नही था. उसने भी पिछे बैठने वालो को बडी आवाज मे अपनी अपनी कुल्हाडी और दंडे  निकालकर चोरोपर हमला करनेका फरमान किया. उनके झपटने चिल्लानेसे मेरी भी निंद खुल गयी थी. मै बैठे बैठे ही उनकी आवाजे सुन रहा था. गाडीमे बैठनेवाले सब लोग अपने अपने दंडे और कुल्हाडी हातमे लेकर खडे हो गये थे और गाडीवान को साथ दे रहे थे.  

       अचानक उसी वक्त पिताजी ने तिन सेल वाला पावरफूल टाॅर्च निकालकर उसका लाइट चोरोके  मुँहपर चमकाना शुरू कर दिया.  टाॅर्च का लाइट चमकाने से चोर मनही मन हडबडाकर डर गये थे. आगे क्या करना यह भी उनकी समझ मे नही आ रहा था. दोनो चोरोने उस वक्त अपनी जान बचाना ही उचित समझा और वहांके अंधेरे का फायदा लेते हुये चुपचाप गायब होकर दोनो चोर दो तरफ भाग गये. गाडीमे बैठनेवाले लोगोने अपने अपने दंडे लेकर दूर तक चोरोका पिछा किया लेकीन चोर कहीं नही दिखे.  इस तरह  चोरो के हमले की घटना होने से पिताजी ने अब बहुतही सावधानी से रातका सफर करना शुरू कर दिया था. 
                                                         To be continued......
 

                                     धन्यवाद. 
     

             श्री रामनारायणसिंह खनवे 
              परसापूर. (महाराष्ट्र) 🙏🙏🙏

(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर, हम कल फिर मिलेंगे.)
   

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