"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 19 (उन्नीस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरी हायस्कूल की पढाई .......(1960 - 62 के दरम्यान की घटनाये) (Part Two)

         मेरी हायस्कूल की पढाई .......

(1960 - 62 के दरम्यान की घटनाये)

             मेरी यादों के पिछले भाग मे हमने देखा की, मै कक्षा नऊ मे बडे भाई के साथ रूम पर रहकर स्कूल जाता था. वहां के थियेटर मे हम लोग फिल्म देखने जाते रहते थे. "भाभी की चूडीयाँ" पिक्चर को मै कभी भुल नही सकता. इस प्रकारे हमारी स्कु्ल की पढाई चल रही थी. 

         वहां पर हमे कोई रोकने टोकने वाला नही होने से हमे जो कुछ अच्छा दिखता था वह काम हम करते रहते थे. चाहे उससे हमे भविष्य मे नुकसान भी होता हो, तो भी.  हम मन से मजबूत नही रहे तो हमारे साथ के दोस्त मित्र भी हमे भटकाने का काम अच्छी तरह निभाते रहते है. ऐसे समय मे माता पिता की योग्य साथ बच्चे को मिलते रही तो ही बच्चे का भविष्य उज्वल हो सकता है. अन्यथा कुछ भी हो सकता है. मेरे जिवन मे आये हुये उतार चढावो के आधार पर इस दिशा मे सोचने को मै मजबूर हुआ हूँ. 

         मुझे स्कूल के गाँव मे रहने के लिये रूम थी. खाने पिने की कोई कमी नहीं थी. साथमे भाई भी था. फिर भी मेरा स्कूल की पढाई मे बिलकुल मन नही लगता था. बडा भाई दसवी कक्षा की पढाई मे मग्न हो गया था. उसकी दसवी बोर्ड की परिक्षा थी. उसका मेरे तरफ ख्याल देना थोडा कम हो गया था. इधर कक्षामे सब बच्चे  मेरे लिये नये थे, मै छोटे गाँव से आया होनेसे बाकी बच्चों से थोडा दूर ही रहना चाहता था. टिचर भी नये थे. माता पिता और घरके मेंबर्स नही दिखने के कारण मेरा मन उस जगह से उबग सा गया था. हमने हर शनिवार को सुबह की स्कूल छुटने के बाद गाँव को आने का नियम बना लिया था. अब की बार जब मै गाँव गया तब मैने माँ को स्कूल न जाने का मेरा निश्चय सुना दिया. माँ ने पिताजी को राजी कर लिया था. मेरे लिये मैदान साफ था. बडा भाई अकेला स्कूल के गाँव चला गया था.

मेरा साथी बच्चों के साथ गाँव मे घुमने का काम शुरू हो गया था. आठ दस दिन के बाद एक घटना घटी. गाँव के हनुमान मंदीर मे दो पहर के वक्त खेलने के लिये छोटे बडे बच्चों के मनोरंजन के लिये कुछ कॅरम बोर्ड की व्यवस्था ग्राम पंचायत ने कि हुयी थी. मै जिस दिन वहां मंदीर मे कॅरम खेलने पहूंचा ग्राम पंचायत के सरपंच भी कॅरम खेलने वहां पर आ गये. मै उनके लिये जगह करने के लिये बाजूमे ही बैठ गया. उस दिन स्कूल की छुट्टी वाला दिन नही था. सरपंच साहाब को मालूम था की मै बाहर गाँव पढाई करने जाते रहता हूँ. उस समय बाहर गाँव पढाई करने जाने वाले गिने चुने पाच छह लोग ही होंगे. सो उन्होने मुझे गाँवमे रहने का कारण पुछ ही लिया. उनके पुछने पर मैने सिधा जबाब दे दिया था की, मै अब पढाई करना नही चाहता. मैने स्कूल की पढाई छोड दियी है. उस पर सरपंच साहब थोडा चूप रहे, लेकिन बादमे उन्होने कहा की, "अपने गाँव से गिने चुने बच्चे ही बाहर गाँव को पढाई कर रहे है. हम सब कम पढे लिखे होने के कारण हमे खेती किरसानी के बगैर दुसरा काम आता नही. कभी खेती मे फसल होती है, तो कभी नही होती. मै सिर्फ तिसरी कक्षा पास हूँ, तो मुझे गाँव वालो ने सरपंच चुना है. तुम पढाई मे होशियार हो यह बात सबको मालूम है. तुम पढोगे तो हो सकता है मंत्री भी बन जावोगे. तुम मेरी बात सुनो, पढाई मत छोडो. कल ही स्कूल मे जावो". उनकी बात मेरे समझ मे आ गयी थी. मैने उन्हे स्कूल जाने के लिये हाँ कर दिया और घर चला गया. 

           माँ और पिताजी को मैने रातमे ही बता रखा था की, कल मुझे स्कूल जाना है. सो मै सुबह जल्दी से ही उठकर शहर के रूम पर पहूच गया और बडे भाई को भी बता दिया की मै अब पढाई करना चाहता हूँ. वह तो यही चाहता था. उसके साथ मै स्कूल पहूच गया. कक्षा में जब क्लास टिचर को मै दिखा तो उन्होने मेरे गैर हाजिरी का कारण पुछा. मै मन से पहले ही घबराया हुआ था.  घर पर मै बिमार पडा था ऐसा झुटमुट का कारण मैने क्लास टिचर को बता दिया. यहां यह बात खत्म हो जायेगी ऐसा मैने समझ लिया था. लेकिन नही, बात यहां खत्म नही हुयी, यहां से बात शुरू हुयी. क्लास टिचर ने पिताजी के सही का मेरे बिमार होने का अर्जी लिखाकर लाने को कहा........

                                                                          To be continued .......

                                               धन्यवाद. 

                            श्री रामनारायणसिंह खनवे.

                                   परसापूर. (महाराष्ट्र).🙏🙏🙏

(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)



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