"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें ( Meri Yaden) :- भाग 15 (पंधराह)(सत्य घटनाओ पर आधारित) : पास वाले गाँव के स्कूल की मेरी पढाई.........(Part Two)

           पास वाले गाँव के स्कूल की मेरी पढाई.........

          प्यारे पाठको, कल हमने देखा की, हम बच्चे पास वाले गाँव के स्कूल मे पढाई करने पैदल ही जाते थे. हमारे पास उस समय खुद की सायकल भी नही थी. कभी कभार प्रायव्हेट गाडी वाले हमे मोफत मे स्कूल वाले गाँव बैठाकर ले जाते थे. यह सब  समय 1957 से 60 के दरम्यान की घटनाये है.

           हमारे स्कूल के गाँव मे से एक नदी बहते गयी थी. उस नदी पर हम बच्चे दो बजे की छुट्टीमे हर रोज खानेके डबे लेकर जाते, और खाना खाते थे.  उतना समय हम बच्चों के लिये बडा ही मनोरंजक  होता था. बरसात के दिनोमे नदी को बहूतही पानी बहते रहता था. नदी पर से जाने वाला पूल बहूतही कम उचाई वाला रहनेसे पूल के उपरसे महिनो  पानी बहता रहता था. 

              हमारे स्कूल मे हर शनिवार के दिन सुबह नऊ बजे के बाद हिंदी भाषा विकास के लिये पूरे स्कूल के बच्चों और टिचर मिलाकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता था. वहां पर हर क्लास के दो बच्चों को हिंदी भाषामे तिन मिनिट का भाषण देना अनिवार्य होता था. हर बच्चे का एक बार सबके सामने खडे होकर तिन मिनिट  भाषण देनेका नंबर आना ही था. मेरे गाँव के एक लडके का हिंदी भाषण के लिये नंबर आया था. उसने मनकी घबराहट सामने वाले बच्चों को ना दिखे इसलिए आँखोपर काला चष्मा लगा रखा था. मराठी मिक्स हिंदी  भाषा मे बडेही ढिटाई से उसने भाषण शुरू किया था. घोडे के बारेमे बताते वक्त उसने बताया था, "घोळे कु हरा चष्मा लगाया और सुका गवत खानेकु दिया तो घोळा उसकु हरा गवत समझकर खा ही लेगा" इस तरह के वाक्य उसके मुंहसे निकलते ही सब बच्चों और टिचर लोगोने बडी जोरसे ठहाके लगाकर हसना शुरू करनेपर  उलटेमे वह बच्चों को पुछने लगा की, "माय् काई चुकलं काय ?" बच्चे फिर जोरसे हसने लगे थे. यह बात आज तक मै भुला नही हूँ.  

              उस वक्त कक्षा सात और आठ की परिक्षा बोर्ड की थी. परिक्षा कठीन रहती थी. पास होनेके लिये बहूत पढाई करनी पडती थी. उसमे बहूतसे बच्चे  सिर्फ इंगलिश सब्जेक्ट मे ही फेल हो जाते थे. अगले साल के लिये फिर उसी क्लास मे जाकर पढना पडता था, तब कही पास होनेको मिलता था. मै हर साल की परिक्षा मे पास होते गया. मेरे आगे एक साल पहले मे मेरे बडे भाई साहाब और उनके कुछ साथी बच्चे गाँव के तहसिल के बडे हायस्कूल मे पढाई करने गये थे. मुझे भी उनके पिछे पिछे चलकर जाना ही था ना. सो मैने भी हायस्कूल की पढाई करनेके लिये उसी हायस्कूल मे प्रवेश मिलाया.

                                                                    To be continued............

                                              धन्यवाद. 

                            रामनारायणसिंह खनवे 

                                    परसापूर (महाराष्ट्र).🙏🙏🙏

(प्यारे पाठको एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)

टिप्पणियाँ

  1. क्रिपया आगे की कहानी भी बताओ आप बहुत ही इंट्रेस्टींग लिख रहे है।
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

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