"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 24 (चौबीस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरे बचपन के दिनो का दशहरा और कुल दैवत.......(Part One)

                प्यारे पाठको, पिछले भागमे, यादों के जरिये हमने देखा की, मेरी बडी माँ और उनके भतिजे कैसे थे ? उनके स्वभाव कैसे थे ? हमारे उनके संबंध कैसे थे ? इन सब बातोको देखने के बाद आज हम एक अलग विषय की यादें ताजा करेंगे. वह विषय है... 
मेरे बचपन के दिनो मे हमारे परिवार मे दशहरे का त्योहार कैसे मनाये जाता था  ?.......
             इन घटनाओ का काल  अंदाजन 1955 - 60 के दरम्यान का है.  दशहरा त्योहार के आगमन के पुर्व मे पोला गणेशोत्सव त्योहार आते है. आगेमे थोडी गॅप मिलती है तो उस गॅप मे सबकी बरसाती मौसम और खेती किरसानी की दौडधुप चलते रहती है. खेती मे फसल का बहरना शुरू हो जाता है. पर्यावरण मे थोडा संतूलन आये जैसा मालूम पडता है. उन्ही दिनोमे नवरात्री पर्व भी आ जाता है और सब तरफ उत्साह उमंग का माहोल देखने को मिलता है. बरसो से इसी तरह का मौसम हम देखते आ रहे है. सिर्फ उसमे फरक इतना ही पडा की, पहले जमाने मे दशहरे के थोडा आगेसे ही गुलाबी थंड पडना शुरू हो जाती थी. जो आज के समय मे गायब हुयी सी लगती है.
           मेरे बचपन मे दशहरे के दिन सुबह ही हमारी माँ घरके आंगन मे गाय के गोबर से दशहरे का प्रतिक रूप मंडती थी. उसमे झेंडू के फूल सजाकर लगाये जाते थे. बादमे उसकी पूजा कियी जाती थी. हम बच्चों को सुबह ही नहला -धुलाकर नये कपडो मे तैयार किया जाता था और बादमे दस - ग्यारह बजे के दरम्यान मेरे पूरे परिवार के लोग अजित्र बुआ (कुल दैवत) पर पूजा करने जाते रहते थे. 
           हमारे कुल दैवत का ठिकाणा हमारे गाँव से एक कोस के दूरी पर ही था. वहां पहूचने पर मंदिर की साफ सफाई करने के बाद कुँवे से पानी की व्यवस्था करनी होती थी. उस जमाने मे कुँवो पर आज के जैसे मोटर पंप नही रहते थे. कुँवा भी दूर खेतोमे रहता था. घर की दोर (रससी), बकेट बैल गाडी मे रखनी ही होती थी. हमारे बैल गाडी मे मेरे भाई बहन, माँ, पिताजी और हाकने वाला सालदार इतने ही लोगोके लिये जगह होती थी. मेरे बडे और मंझले पिताजी और उनके परिवार भी अपने अपने छकळो से कुलदैवत पर आते रहते थे. हमारे  कुल दैवत अजित्र बुआ को परिवार मे सबसे उँचा स्थान था. परिवार के कोई भी नये शुभ कार्य की मन्नत मांगने के लिये पूजा अर्चा हमारे कुलदैवत के साक्षी से ही कियी जाती थी. परिवार के छोटे बच्चों की जावले (सिर के बाल) इसी कुल दैवत के मंदीर पर पुराने समय से ही उतारी जाती थी.
मेरी जावले भी इसी कुलदैवत के साक्षी से उतारी गयी थी. हमारे परिवार के नये जन्मे बच्चों की जावले चैत्र माह मे ही उतारी जाती थी. बहुतांश उस दिन रामनवमी का त्योहार ही रहता था. उस बारेमे हमारे कुल मे पूर्वा पारसे जो मान्यता और प्रथाये चली आ रही थी. वह सब मेरे माँ और पिताजी ने मेरे सब भाई बहनो की जावले उतारते समय तक निभाई थी. 
           कुल दैवत की पूजा होनेके बाद हम पुरूष वर्ग को पास वाले खेत से सोनेके (आपटे का) पेड का सोना लुटकर लाना होता था. एक बार, हम दोनो भाई और पिताजी सोना लुटने उस सोनेके पेडके पास पहूँचे ही थे, तब अचानक ही आग्या शहद की बहूत सी मख्खीयो ने हम तिनो पर जोरदार हमला कर दिया था. उस हमले से हम तिनो इतने बोखला गये थे की, हमे किधर भागना यह भी नहीं सुझ रहा था. मख्खीयोने तिनो के मुँह और बालो मे दंश कर लिया था. उसी समय मेरे पासवाले गाँव के छोटे वाले मामाजी वहां पहूँच गये थे. जिनकी खेती पास मे ही थी. उन्होने हम तिनोके बोखलाने की आवाज सुनी, तो वे उस दिशामे हम लोगोंको धुंडते हुये वहां पहूच गये थे. उन्होने देखा की उस सोने वाले पेड के पास मे ही एक इमली का भी पेड था और उस पेड पर बडा सा आग्या शहद लगा हुआ था. वहां से आग्या मख्खीयो के झुंड के झुँड आकर हम लोगों पर हमला कर रहे थे. मामाजी ने हम लोगोंको उस जगह से तत्काल घर जानेके लिये कहा और खुद भी वहां से जल्दी ही निकल पडे थे. इस तरह हम लोग उस समय बहूत बडे संकट से बच गये थे.                                         दशहरे के दिन दोपहर मे  घरमे जितनी भी लोहे की वस्तूये होती थी, उन सबको पानी से धोकर पिताजी आंगन मे सबकी पूजा करते थे. उसके बाद बैलगाडी की भी पूजा कियी जाती थी. हम बच्चे  पूजा का नारियल प्रसाद कब खानेको मिलेगा यही देखते रहते थे. इस प्रकार घरके लोहे के शस्त्रोकी पूजा होनेके बाद हम लोग भोजन कर लेते थे. भोजन मे जादातर खिर-पूडी या केले-दुध का कालोन खानेमे मिलता था. मुझे मिठा पसंद होनेसे भोजन करने के बाद एक अलग ही अनुभूती से मुझे आनंद  मिलता था. 
         उस जमाने मे मेरे गाँव के दशहरे का मुख्य कार्यक्रम शाम पाच बजे के बाद ही शुरू होता था. शाम पाच के बाद सब पुरूष वर्ग गाँव के देवी देवताओ को सोने के पत्ते  चढाने और मन्नते मांगने निकल पडते थे. फिर गाँव के बडे बुजुर्गो से उनका आशीर्वाद लेने की बहुतांश लोगोमे होड सी लगी रहती थी. उस समय मेरे गाँव मे जगह जगह पर देवी के घट की पुजा रहती थी. नव रात्री मे हर जगहपर ढोल बजते थे.  देवी के भगत के शरीर मे देवी देवता का आना समाजमान्य बात होती थी. उसी तरह भगतके मुँहसे निकले हुये बातपर लोगोका अति विश्वास (अंधविश्वास) होता था. मै और मेरे परिवार की महिलाये और बच्चे इन देवी देवताओ के पास भी जाया करते थे.
        शामके वक्त हम सब बच्चे मोहल्ले मे के बुजुर्ग लोगोंसे आशीर्वाद लेने जाते थे. बुजुर्ग लोग हमे आशीर्वाद के रुपमे तांबे के पैसे देते थे. जिससे हम बच्चों को पैसोकी गिनती करनेकी 
ट्रेनिंग मिलते रहती थी.
To be continued.........
धन्यवाद. 🙏🙏🙏🙏🙏
            श्री रामनारायणसिंह खनवे.
               परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे).
 





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 119 (एक सौ उन्नीस) :- लाखो तारें आसमान मे .....देखके दुनिया की दिवाली ... दिल मेरा चुपचाप जला ......(1987-88 के दरम्यान घटी सत्य घटनाओं पर आधारित मेरी यादें) (Part Two)

"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 118 (एक सौ अठराह) :- "लाखो.. तारे आसमान में, ... देख ..के दुनिया की दिवाली, दिल मेरा चुपचाप जला ......(1987-88 मे घटी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) (Part One)