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"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 36 (छत्तीस) : मेरी फिल्म डिस्ट्रिब्युशन ऑफिस की नोकरी..(सत्य घटनाओ पर आधारित) ( Part Two)

             मेरी यादें  (Meri Yaden)  :- भाग 36 (छत्तीस) : मेरी फिल्म डिस्ट्रिब्युशन ऑफिस की नोकरी..(सत्य घटनाओ पर आधारित) ( Part Two)                    प्यारे पाठको, मेरी यादों के माध्यम से, पिछले भागमे हमने देखा की, मुझे "एम" फिल्म डिस्ट्रिब्युशन ऑफिस मे टायपिस्ट की नोकरी मिल गयी थी. मैने "पार्ट टू" की एग्झाम एक्स्टर्नल तरिके से देने के लिये फाॅर्म भरके स्टडी भी शुरू कर दि थी. आगे क्या हुआ यह हम अब देखेंगे.....             फिल्म डिस्ट्रिब्युशन ऑफिस की नोकरी करते हुये छुट्टीके समय मे, मै उसी शहर मे रहने वाले मेरे दूरके एक रिस्तेदार, वकील साहाब के बंगले पर उनसे मिलने जाते रहता था. मेरे दादी के रिस्तेदारो से उनके पिताजी संबंधित थे. मेरे लिये यह बहूत बडी बात थी. उस समय वे साठ की उम्र के होंगे. उनकी पत्नी बी एड काॅलेज की प्राचार्य थी. मै उनके पहचान से सरकारी नोकरी मे जानेकी सोच रहा था. उस जमाने मे नोकरी मिलाने मे इतनी स्पर्धा नहीं थी.         ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 35 (पैतीस) : मेरी फिल्म डिस्ट्रिब्युशन ऑफिस की नोकरी...(सत्य घटनाओ पर आधारित : 1966-67 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये.) (Part One).

           मेरी यादें  (Meri Yaden) :-  भाग 35 (पैतीस) : मेरी फिल्म डिस्ट्रिब्युशन ऑफिस की नोकरी... (सत्य घटनाओ पर आधारित : 1966-67 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये.) (Part One).                   प्यारे पाठको, पिछले भागमे मेरी यादों के माध्यम से हमने देखा की, मुझे फिल्म डिस्ट्रिब्युशन ऑफिस मे टायपिस्ट के पद पर नोकरी मिल गयी थी. मै नोकरी के लिये नजदिकी रिस्तेदार भाई के ही रूम पर रहने लगा था. बदले मे मै उन्हे कुछ रूपये देता था. उसके बाद की घटनाये हम अब मेरी यादों के माध्यम से आगे देखेंगे. .....              "एम" फिल्म डिस्ट्रिब्युशन ऑफिस मे मुझे "टायपिस्ट" का काम करना था. इस ऑफिस मे हमारे हेड ऑफिस वालो के मालिकाना अधिकारिता मे की फिल्मो की प्रिंटे महाराष्ट्र और एम पी के सिनेमा थियेटरो मे काँट्रॅक्ट पर कुछ दिन चलाने के लिये भेजी जाती थी. थिएटर  मालिको से पाच, सात, दस दिन या फिर आगे पिक्चर चलती रहे तो आगे जब तक थियेटर वालो को प्राफिट मिलते रहता था तब तक पिक्चर चलते रहती. फ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :-भाग 34 (चौतीस) : मेरे काॅलेज की पढाई का दुसरा साल....(सत्य घटनाओ पर आधारित : 1965-66 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये.) (Part Three)

              मेरी यादें  (Meri Yaden) :-भाग 34 (चौतीस) : मेरे काॅलेज की पढाई का दुसरा साल.... (सत्य घटनाओ पर आधारित : 1965-66 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये.) (Part Three)         प्यारे पाठको, मेरी यादों के माध्यम से, पिछले भागमे हमने देखा की, हेल्थ चेकिंग के लिये मै दवाखाने मे गया था.  वहां के डाॅ. साहाब ने मुझे एक महिना इंजेक्शन का कोर्स पूरा करने के लिये कहा था. उनके कहे मुताबिक मैने इंजेक्शन का कोर्स पूरा कर लिया था. अब मेरी तबियत मे अच्छा सुधार हो गया था. उसके बाद की घटनाये, मेरी यादों के माध्यम से अब हम आगे को देखेंगे........              मेरी तबियत मे अब अच्छा सुधार हो गया था. मित्र मंडली भी मेरी  तबियत को  देखकर समाधान व्यक्त कर रहे थे. मुझे भी जिने मे अच्छा आनंद आ रहा था. फिर भी मेरी समझमे एक बात नहीं आ रही थी की,  उस समय मेरी उम्र अठारह साल की थी. डाॅ. साहाब ने उनके इंजेक्शन कोर्स के बाद, मेरे उम्र मे बिस साल बढने की बात कही थी. उस समय मेरी उम्र अठरा साल की और इंजेक...

मेरी यादें (Meri Yaden) भाग 33 (तेहतीस) :- मेरे काॅलेज की दुसरे साल की पढाई.....(सत्य घटनाओ पर आधारित : 1965-66 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये) (Part Two)

           प्यारे पाठको, मेरी यादों के माध्यम से इसके पहले हमने देखा की, मुझे यु पी एस सी की एग्जाम देने नागपूर जाना पडा था. परिक्षा देकर आने मे मुझे चार दिन लग रहे थे. मैने चार दिन का मुकाम नागपूर के रेल्वे स्टेशन पर ही किया था. पेपर के दिन मै सुबह आठ बजे ही सेंटर पर जा बैठा था. सुबह दस बजे पेपर होने के कारण नऊ के बाद से लडके लोग सेंटर पर आना शुरू हो गये थे. अब आगे देखिये......              सेंटर का गेट आधे घंटे  पहले ही खोल दिया गया था. बोर्ड पर मेरा नंबर देखकर मै रूम मे जाकर पेपर शुरू होने की प्रतिक्षा करने लगा था. मेरे मनमे कुछ धाकधुकी भी थी की, पेपर मे क्या पुछा जायेगा और क्या नही ? मै मन ही मन मे भगवान का स्मरण भी कर रहा था. ऐसे मे पेपर शुरू होने की बेल बजी और हात मे पेपर और प्रश्न पत्रिका दोनो मिल गये थे. अब बारी मेरी थी. बाकी सब लोगोने पेपर लिखना शुरू कर दिया था. पर॔तु मै अभी तक जबाब के बारेमे सोच ही रहा था. इंग्लिश और हिन्दी ऐसे दोनो भाषाओ मे प्रश्न पत्रिका दियी हुयी थी. किसी  एक भाषा मे मुझे जबाब लिखने ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 32 (बत्तीस) : मेरे काॅलेज की पढाई का दुसरा साल......(सत्य घटनाओ पर आधारित. 1965 - 66 के दरम्यान की घटनाये.) (Part One )

            प्यारे पाठको, मेरी यादों के पिछले भाग मे हमने देखा की, युके भाऊ, आर आर और मैने शाम के समय भजिये की पार्टी  का ठहराया था. भजिये तैयार करने पर चारो लोगो ने जब भजिये खाना शुरू किया था तब  स्वाद कुछ अजिब सा लगने लगा था. बाद मे तेल के पिपे मे मरा हुआ चुहा दिखने के बाद हमे सब भजिये फेकने पडे थे. बादमे  अपने घर को जाकर थंडी रोटी खानेमे ही सबको समाधान मानने पडा था.               आज मेरी यादों के माध्यम से हम देखेंगे की, मेरे काॅलेज का दुसरा साल कैसे बिता ?  मैने पहले साल की प्रि युनिव्हर्सिटी परिक्षा पास कर लियी थी. अब इस सिजन से मेरी काॅलेज के दुसरे साल की पढाई शुरू हो गयी थी. हर दिन  सुबह  मै सायकिल से जाकर काॅलेज के क्लासेस कर रहा था.  हर दिन सुबह मुझे गाँव से काॅलेज पहूचने मे आधा घंटा लेट होता था.  पहला  क्लास (तासिका)  हमारे काँलेज के प्रिन्सिपल साहाब का होता था. उनके  क्लास  मे हर दिन मै  आखरी दस मिनिट मे पहूँचता था. ऐसा हर दिन होते रहनेसे मै प्रिन्...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 31 (इकत्तिस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरे बचपन के प्रिय मित्र युके भाऊ.....(Part Three)

            प्यारे पाठको, मेरी यादों के पिछले भाग मे हमने देखा की, युके भाऊ, मै और आर आर तिनो मित्र सिताफलो के लिये बन मे गये थे. बिच रास्ते मे हमे बन का चौकीदार भी मिला था. बादमे जब मुझे सिताफल के पेड पर  काला नाग दिखने पर मैने युके भाऊ को पेड से दुर हटा लिया था. फिर कभी सिताफल के बन मे न जानेकी कसम खाकर ही हम तिनो मित्र घर लौट आये थे.               आज हम तिनो मित्रो के साथ आगे घटी घटनाओ के बारेमे जानने की कोशिश करेंगे.  हम तिनो मित्र कभी कभार बाहर गाँव के थियेटर मे पिक्चर देखने भी चले जाते थे. बहिरम के मेले मे भी गये थे. आर आर भाऊ, मॅटरनिटी लिव्ह पर गयी हुयी मास्टरनी के जगह पर गाँव मे ही तिन माह के लिये, टिचर बन गये थे.  नोकरी मे बिझी होने से आर आर से हमारी मुलाखाते उन दिनो थोडी कम होती थी.  परंतु मेरी और युके की मुलाखाते हो जाती थी. मेरा उसमे थोडा स्वार्थ भी था. मेरे किसी भी समस्या का हल मै युके से मिला लेना चाहता था.             अभी किराणा दुकान चलाते हुये युक...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 30 (तीस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरे बचपन के परम प्रिय मित्र युके भाऊ (समय 1960 से 82 के दरम्यान की घटनाये अंदाजन) (Part Two)

           प्यारे पाठको,  मेरी यादों के माध्यम से कल हमने देखा की, युके भाऊ के किराणा दुकान मे मै फुरसत मे हर रोज जाकर बैठता था. किराणा के साथ मे उन्होने पोस्ट ऑफिस का पार्ट टाईम  काम भी ले लिया था. वे बंबई रिटर्न होनेसे लोग उनसे प्रभावित होने लगे थे.              युके भाऊ की किराणा दुकान अब मेरे लिये फुरसत मे बैठने का अड्डा हो गया था. उनके खाली समय मे मै युके भाऊ से मेरे दिमाग मे उभरी हुयी कोई भी समस्या का हल जानने का प्रयत्न करते रहता था. युके भाऊ झटसे मेरे समस्या का विश्लेषण, गणितिय पद्धती से कर देते थे. जिसे कोई भी नकार नही दे सकता था. इस तरह युके भाऊ मेरे लिये मित्र, सखा भी थे और लोगों की नजरमे मेरे गाॅड फादर भी बन गये थे.  उन्ही दिनो युके भाऊ के किराणा दुकानमे एक नये सदस्य आकर बैठने लगे थे. वे भाऊ के समाज के अठरा बिस सालके युवक थे. उस समय वे मुझसे उम्र मे चार पाच साल बडे होंगे. उन्हे पिताजी नहीं थे. पढाई मे आगे थे. उन्होने मॅट्रीक  की परिक्षा  पास करने पर सरकारी नोकरी करने का मन बना लिया था. ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 29 (उन्तीस) (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरे परम प्रिय मित्र. (युके भाऊ) समय 1960 से 82 तक अंदाजन. (Part One.)

              प्यारे पाठको, मेरी यादों के माध्यम से, हमने अब तक देखा की, मेरी काॅलेज की पढाई शुरू हो चुकी है. साथ मे मैने टायपिंग सिखना प्रारंभ करके उसकी भी दो - एक परिक्षाये अच्छे श्रेणी मे पास करनेके बाद वहीं पर पार्ट टाईम नोकरी जाॅइन कर लियी थी. काॅलेज की प्रि युनिव्हर्सिटी की परिक्षा भी पास कर लियी थी. अब मेरा ध्यान मेरी पर्सनालीटी की ओर जाने लगा था. मेरी उँचाई कैसे बढेगी ? इसके लिये मेरे प्रयत्न शुरू हो गये थे.              आगे बढकर देखने के पहले, मुझे थोडा पिछे की ओर की भूतकाल मे घटी घटनाओ के बारेमे जानने की उत्कंठा बढने लगी है. यह घटनाये मेरे परम प्रिय मित्र "युके भाऊ" से संबंधित है. मै उन (मित्र)के नाम की जगह पर "युके भाऊ " नाम लिख रहा हूँ. उस मित्र से संबंधित किसी  भी भावनाओ को ठेस ना पहूँचे, यही पवित्र उद्देश मेरा इसके पिछे मे है. कृपया आप मेरी इस भावना को समझ लेंगे.              हमे और भी पिछे की भूतकालीन बाते दिख रही है. उन्ही बातो के नुसार, जब मेरे परम प्रिय मित्र य...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 28 (अठ्ठाईस) : मेरी काॅलेज की पढाई : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : (1962 से 66 तक की घटनाये) (Part One).......

              प्यारे पाठको, मेरी यादों के माध्यम से हमने अब तक देखा की,  मैने एस एस सी बोर्ड की परिक्षा अच्छी तरह से पास कर लियी थी. इस कारण मेरे पिताजी और सब लोग उस वक्त खुश हुये थे. मेरा काॅन्फिडेन्स भी बढते चला था. मेरे पिताजी ने मुझे  नयी हरक्युलिस सायकिल खरिद कर दियी थी. मेरे बडे भाई ने भी प्रि युनिव्हर्सिटी पास कर लियी थी. यहां से ही मेरी  काॅलेज की पढाई शुरू हो गयी थी.                 उस समय को मैने बडे भाई के काॅलेज मे ही प्रि युनिव्हर्सिटी के क्लास मे दाखिला मिला लिया था. मै मेरी सायकिल से और बडे भाई उनके सायकिल पर गाँव से काॅलेज आते जाते रहते थे. उस वक्त नौकरी मिलाने के लिये इंगलिश मराठी टायपिंग की परिक्षाये पास होना आवश्यक होता था. सरकारी नोकरी का आकर्षण मुझे बहूत ही था. इस कारण मैने इंगलिस मराठी टायपिंग का क्लास लगाना ही उचित समझा  था. इस तरह एक ही दिन मे मै दोनो जगह पर पढने जाता था. सुबह ग्यारह तक काॅलेज, उसके बाद एक बजे तक टायपिंग क्लासेस करने के बाद, मै दो ढाई तक घर पहूँचते...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 27 (सत्ताइस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : हमारी बडी बहन. ("डी. बहन") उनसे संबंधित 1950 से 60 तक की रोचक घटनाये......(Part One)

          प्यारे पाठको, पिछले भागमें हमने देखा की,  हमारे घर वालो के साथ {पि.} मामाजी के क्या संबंध थे ?  उनके शादी के लिये पिताजी ने  कितने और कैसे प्रयत्न किये थे ? {पि.}मामाजी का जिवन कैसे बिता था ? इन सब बातो को (मेरी यादों के माध्यम से) हमने जाना. आज हम जानेंगे,  हमारी बडी (ममेरी) बहनजी "{डी.} बहन" के बारेमे की कुछ रोचक घटनाये.               इन रोचक घटनाओ को हम तब से याद करेंगे, जब से मेरे बचपन मे मुझे थोडी समझ आना शुरू हुयी थी. अब मुझे याद आ रहे है मेरे बचपन के वे दिन, जब मै मात्र चार पाच साल का ही था. मेरे से छोटी वाली बहन दो ढाई साल की होगी. यह प्रसंग "डी. बहन" के साथ मुझे याद आने वाला सर्व प्रथम का प्रसंग है. "डी. बहन" उस समय आठ दस साल की होगी.  तब "डी. बहन" मेरे से छोटी बहन को काँखमे उठा कर  आंगन मे घुमा रही थी. मै भी छोटी को चुप कराने के प्रयत्न मे "डी. बहन" का साथ दे रहा था.  उस समय की वह एक हलकीशी पतलीशी लडकी जो पोलका और लहंगा पहने हुये थी, वही मेरी ममेरी बहन "डी. बाई" थी. मे...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 26 (छब्बीस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरे पिताजी के बाल सखा पि. मामाजी : घटनाओ का समय 1953 से 60 तक अंदाजन......(Part One)

              प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा की, छटीके अक्षर, ब्रम्हा की रेघ का उस जमाने मे नये जन्मे बच्चों के जिवन मे कितना महत्व होता था ? महिलाओ का इन  मान्यताओ पर कितना विश्वास  होता था इस बारेमे की जानकारी मेरी यादों के जरिये हमने देखी. आज के भागमे मेरी यादों के माध्यम से आज हम देखेंगे की, मेरे पिताजी के बाल सखा पि. मामाजी का मेरे जिवन मे क्या महत्व रहा है.........                मेरे पिताजी के बचपन के एक बाल सखा (मित्र) थे. वे दोनो एक ही उम्र के थे. उन दोनो ने स्कूल मे एक साथही पढाई कियी थी. फूरसत मे दोनो एक साथ ही कवळी गोली के खेल खेला करते थे. परंतु दोनोमे फरक यही था की वे मराठी भाषिक थे. पिताजी हिंदी भाषिक थे. फिर भी दोनो एक माँ के दो बच्चों के समान थे. घर की एक रोटी दोनो आधी आधी बाटकर खाते थे. इतना उन दोनोका दोस्तांना घना था. मै पि. मामाजी को पिताजी के साथ बचपन से ही देखते आ रहा था. पि. जब भी हमारे घर आते तब वे हमारे परिवार के सदस्यो से हमारे ही भाषा मे  बातचित किया करते थे. पिताजी ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 25 (पचीस) (सत्य घटनाओ पर आधारित) : छटी का अक्षर, ब्रम्हा की रेघ ....(घटनाओ का काल अंदाजन 1952 से 56 के दरम्यान तक).

        प्यारे पाठको, मेरी यादों के माध्यम से हमने पिछले भागमे देखा की, मेरे बचपन मे दशहरा कैसे मनाये जाता था, उसी तरह हमारे परिवार के लिये कुलदैवत का महत्व क्या था यह भी देखा. आज के भाग मे हम देखेंगे, मेरे बचपन की छोटी छोटी रोचक घटनाये.......       उस समय अंदाजन मेरी उम्र पाच छह साल की होने के बाद, बाहर होने वाली घटनाओ के बारे मे मै चौकस होते जा रहा था. मेरे जन्म के बाद मेरे घर मे पाँच भाई और तीन बहनो का जन्म हुआ था. मेरे बाद घरमे दो बहनो के जन्म होनेपर मै इस असमंजस मे पड रहा था की, कल तक मेरी यह बहन घरमे नहीं थी और आज अचानक ही ये कहां से आ धमकी ? उस समय मेरी उम्र इतनी भी नहीं थी की, मै इन प्रश्नोके हल ढूंड सकू. फिर भी मेरी माँ के पास जाकर मै इस सवाल को उसके पास दोहराते रहता था. उस समय मेरी माँ आंगन मे बने हुये खेती के दाल दाना कपास इत्यादी के स्टोअर रूम मे मुक्कामी होती थी. वहां बिजली के रोशनी वगैरे का कोई प्रबंध नहीं होता था. सिर्फ एक स्पेशल बाथरूम बनी हुयी रहती थी. एक कोने से कंदिल की रोशनी मिलते रहती थी. नये जन्मे बहन को नहलाने धुलाने के लिये गाँव...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 24 (चौबीस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरे बचपन के दिनो का दशहरा और कुल दैवत.......(Part One)

                प्यारे पाठको, पिछले भागमे, यादों के जरिये हमने देखा की, मेरी बडी माँ और उनके भतिजे कैसे थे ? उनके स्वभाव कैसे थे ? हमारे उनके संबंध कैसे थे ? इन सब बातोको देखने के बाद आज हम एक अलग विषय की यादें ताजा करेंगे. वह विषय है...  मेरे बचपन के दिनो मे हमारे परिवार मे दशहरे का त्योहार कैसे मनाये जाता था  ?.......              इन घटनाओ का काल  अंदाजन 1955 - 60 के दरम्यान का है.  दशहरा त्योहार के आगमन के पुर्व मे पोला गणेशोत्सव त्योहार आते है. आगेमे थोडी गॅप मिलती है तो उस गॅप मे सबकी बरसाती मौसम और खेती किरसानी की दौडधुप चलते रहती है. खेती मे फसल का बहरना शुरू हो जाता है. पर्यावरण मे थोडा संतूलन आये जैसा मालूम पडता है. उन्ही दिनोमे नवरात्री पर्व भी आ जाता है और सब तरफ उत्साह उमंग का माहोल देखने को मिलता है. बरसो से इसी तरह का मौसम हम देखते आ रहे है. सिर्फ उसमे फरक इतना ही पडा की, पहले जमाने मे दशहरे के थोडा आगेसे ही गुलाबी थंड पडना शुरू हो जाती थी. जो आज के समय मे गायब हुयी सी लगती है. ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 23 (तेईस) : मेरी एम पी वाली बडी माँ और उनके भतिजे : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : अंदाजन 1955 - 60 तक की घटनाये : (Part One)

         प्यारे पाठको, कल के भागमे हमने यादों के जरिये देखा की, मेरे बचपन मे मै बहिरम यात्रामे कैसे जाता था और यात्रा मे क्या क्या बाते देखनेको मिली थी यह जाना. आज हम मेरी एम पी वाली बडी माँ और उनके भतिजों के बारेमे छोटे छोटे प्रसंगो मे से कुछ बाते जानने का प्रयास करेंगे.              मेरे बडे पिताजी मेरी बडी माँ को एम पी के धौलपूर गाँव के समृध्द किरार परिवार से ब्याह कर लाये थे. यह समय अंग्रेजो के शासन काल का था. उस गाँव को जाने को रास्ते भी नहीं थे. बैल गाडी से तिन दिनो मे शेर चितो वाले घने जंगल से होकर जाना होता था. प्रवास मे कोई साथीदार भी नही रहता था. मेरे बडे पिताजी के साथमे सिर्फ बडी माँ ही रहती थी. हम कल्पना कर सकते है की, शेर चितो का घना जंगल और उनके बिच से पथरिले रास्ते से सिर्फ बडी माँ और बडे पिताजी का छकळे मे बैठकर धौलपूर गाँव को जाना. कितना खतरा भरा होता होगा. बडे पिताजी और बडी माँ दोनो कितने हिंमत के पक्के होंगे. इस एक ही प्रसंग से हम कल्पना कर सकते है की मेरी बडी माँ भी हिंमत की कितनी मजबूत  होगी.   ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 22 (बाइस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित): मेरे बचपन की बहिरम यात्रायें ... (1955 से 60 के दरम्यान की घटनाये) (Part One)

  मेरे बचपन की बहिरम यात्रायें ...   (1955 से 60 के दरम्यान की घटनाये)    (Part One)            प्यारे पाठको, अब तक मेरी यादों के माध्यम से हमने देखा की, मैनै हायस्कूल की पढाई करके एस एस सी बोर्ड की परिक्षा अच्छे मार्को से पास कर लियी थी. मेरे घरके सब लोग उस समय खुश हुये थे और मेरा काॅन्फिडेन्स भी बढने लगा था. आगे मुझे काॅलेज की पढाई  करनी थी और साथ साथ सर्व्हिस भी ढुंढनी थी. परंतु इसमे मेरे उम्र की समस्या आने वाली थी. क्योंकी उस समय मेरी उम्र सोलाह सतरह साल के दरम्यान की ही होगी. मैने बडे भाई के काॅलेज मे प्रि मे दाखिला ले लिया था. बडे भाई ने प्रि युनिव्हर्सिटी पास करने पर उन्होने पार्ट वन मे दाखिला ले लिया था.             प्यारे पाठको, आगे की घटनाये देखने से पहले हमे कुछ महत्त्वपूर्ण और मनोरंजक घटनाये याद आ रही है. उनको याद किये बगैर अपना यह यादों का सिलसिला अधुरा ही रहेगा.  इन घटनावो का घटित काल 1955-60 के दरम्यान का था. इस लिये हम पहले देखेंगे  मनोरंजन से भरी हुयी बहिरम यात्...

मेरी यादें : भाग 21 (इक्कीस) :- मेरे हायस्कूल की पढाई (सत्य घटनाओ पर आधारित) : (1960-62 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये) ( Part Four).

            मेरे हायस्कूल की पढाई (सत्य घटनाओ पर आधारित) : (1960-62 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये) ( Part Four).          प्यारे पाठको, हमने पिछले भागमे मेरी यादों के जरिये देखा की, कक्षा नऊ के बच्चों ने मुझे होशियार समझकर वैसी रिस्पेक्ट भी देना शुरू कर दिया था. जिससे मेरा काॅन्फिडेन्स बढना शुरू हो गया था. मै पहले नंबर के बेंच पर बैठकर टिचर को हर समय रिस्पॉन्स देते रहता था. अब हम, मेरी यादों के माध्यम से देखेंगे की, फिर आगे कौन कौनसी घटनाये घटी ?            कक्षा नऊ के वार्षिंक  परिक्षामे मै दुसरे नंबर से पास हो गया था. मेरे बडे भाईने भी एस एस सी बोर्ड की परिक्षा सेकंड डिव्हिजन मे पास कर लियी थी. हम दोनो भाई अच्छे नंबर से पास होनेके कारण  घरके सब लोग खुश हुये थे. पिताजी ने मुझे इस खुशी के बदलेमे नयी हरक्युलिस सायकल खरिदकर दियी थी. हरक्युलिस  सायकल मिलनेपर मै फूला नही समा रहा था. क्योंकी इस कंपनी की सायकल को लोग उस जमाने मे टाॅप नंबर पर समझते थे. मेरे बडे भाई ने उसी शहर के काॅल...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 20 (बिस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरी हायस्कूल की पढाई ......( Part Three ) (1960-62 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये)

    मेरी हायस्कूल की पढाई ......( Part Three )  (1960-62 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये)              प्यारे पाठको,  इसके पहले मेरी यादों के माध्यम से हमने देखा की, मैने कक्षा नऊ के शुरूवाती दिनोमे स्कूल की पढाई छोडने का मन बना लिया था. परंतु गाँव के सरपंच साहाब ने मेरा मन परिवर्तन करने के बाद मैने फिरसे स्कूल जाना शुरू कर दिया था. फिर उसके बाद स्कूल मे क्या घटित हुआ यह हम मेरी यादों के माध्यम से जानने की कोशिश करेंगे.               जैसा की हमने देखा, मेरे स्कूल की गैर हाजिरी होनेसे नाराज हुये मेरे क्लास टिचर ने मुझे पिताजी से गैर हाजिरी के बारेमे अर्जी लिखवाकर लाने को कहा था. मैने हाँ कह दिया था. इधर मुझे  पिताजी का भी डर लग रहा था. क्योंकी मैने अपने मनसे स्कूल की पढाई छोडने के बात से उनकी अंदर से नाराजी आ गयी थी. मै इस बात को माँ के माध्यम से जान गया था. मेरे निर्णय पर उन्होने कोई प्रतिक्रिया नही दियी थी. सो मैने पिताजी के डर के मारे, क्लास टिचर के नाम से, "खुदके हस्ताक्...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 19 (उन्नीस) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरी हायस्कूल की पढाई .......(1960 - 62 के दरम्यान की घटनाये) (Part Two)

         मेरी हायस्कूल की पढाई ....... (1960 - 62 के दरम्यान की घटनाये)              मेरी यादों के पिछले भाग मे हमने देखा की, मै कक्षा नऊ मे बडे भाई के साथ रूम पर रहकर स्कूल जाता था. वहां के थियेटर मे हम लोग फिल्म देखने जाते रहते थे. "भाभी की चूडीयाँ" पिक्चर को मै कभी भुल नही सकता. इस प्रकारे हमारी स्कु्ल की पढाई चल रही थी.           वहां पर हमे कोई रोकने टोकने वाला नही होने से हमे जो कुछ अच्छा दिखता था वह काम हम करते रहते थे. चाहे उससे हमे भविष्य मे नुकसान भी होता हो, तो भी.  हम मन से मजबूत नही रहे तो हमारे साथ के दोस्त मित्र भी हमे भटकाने का काम अच्छी तरह निभाते रहते है. ऐसे समय मे माता पिता की योग्य साथ बच्चे को मिलते रही तो ही बच्चे का भविष्य उज्वल हो सकता है. अन्यथा कुछ भी हो सकता है. मेरे जिवन मे आये हुये उतार चढावो के आधार पर इस दिशा मे सोचने को मै मजबूर हुआ हूँ.           मुझे स्कूल के गाँव मे रहने के लिये रूम थी. खाने पिने की कोई ...