मेरी यादें (Meri Yaden) भाग 50 (पचास) :- झेड पी की नोकरी और शादी का संबंध दोनो मुझे साथ मिले.( सत्य घटनाओ पर आधारित 1969-70 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये) (Part One)
प्यारे पाठको, पिछले भाग मे मेरी यादों के माध्यम से हम ने देखा की, मै मेरे मित्र के साथ हर बात शेअर करता था. उसके घरवाले भी मुझे एक रिस्तेदार जैसा ही मानते थे. आगे की घटनाये मेरी यादों के माध्यम से अब हम देखेंगे.
दिपावली के बाद से ही मेरे शादी के लिये लडकी वालो के तरफ से हर सप्ताह मे रिस्ते आने लगे थे. फरवरी माह तक साधारणतः दस बारा रिस्तो की लंबी लिस्ट बन गयी थी. हर रिस्ते मे हमे कुछ ना कुछ खामियाँ नजर आने से किसी भी लडकी का सिलेक्शन करना हम लोगोके लिये पहाड खोदने जैसा कठीन कार्य हो गया था. मेरे रिस्तेदारी के लोग भी मुझे अपनी तरफ खिचने मे लगे थे. लडकी मे कौनसे गुण होने चाहिये, इस बातकी किसी को भी कुछ पडी नही थी. मेरे लिये अपेक्षित गुणो वाली लडकी का सिलेक्शन करने मे सहाय्य करने की चर्चा मैने अपने जिगरी मित्र के पास कही. मित्र को इन बातोका अच्छा खासा तजुर्बा होने के कारण, मेरे साथ लडकी देखने जिगरी मित्र को साथ ले जानेका हम सब ने ठहरा लिया था. इस दौरान पास के ही गाँव से दो रिस्ते आये हुये थे. मैनै इन संबंधो की चर्चा मेरे मित्र से करने के बाद उसे रविवार के दिन लडकी देखने जाने का निमंत्रण भी दे दिया. रविवार के दिन हम दोनो मित्रो ने दो लडकियाँ देखी. उनके प्लस मायनस् गुणो के बारेमे चर्चा भी कियी. उस दौरान की हमारी चर्चा का सार यह था की, उन दोनो लडकियो मे से एक लडकी जो नागपूर की थी और कक्षा नऊ पास थी. उसका स्वभाव और शक्ल सुरत हम दोनो मित्रो को समाधान कारक लगा था. उसका नाम "एस" से शुरू होनेवाला था. सिलेक्शन की दृष्टीसे हम दोनो मित्रो की राय एक सी बन गयी थी. इस नागपूर के लडकी के लिये मैने मेरे पिताजी और घरके बुजुर्गो से हाँ कह दिया. आगे का कार्य अब घरवालो को करना था. तब तक मै फिरसे मेरे कामोमे जुट गया.
हायस्कूल के नोकरी से मुझे नयी नयी बाते सिखने को मिली. मेरा काम करने का तजुर्बा बढ गया था. कितना भी कठीण कार्य सामने आ जाये उसे बेधडक दिलसे पुरा करने की आदत मुझे पड गयी. एच. एम साहब के साथ जिले के ऑफिसेस मे जाने से मेरी खुद की झिजक खत्म हो गयी और कर्मचारी लोगोसे पहचान भी बढी, जिसका लाभ मुझे अगले जिवन मे मिलते रहा. हर महिने तिन ग्रॅम सोना खरिदने की आदत ने मुझे गैरजरूरी अनावश्यक खर्चो से बचा दिया. आवश्यक खर्चो को प्रिफरन्स देने की आदत अगर हमे पड जाये तो "आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैय्या" होनेकी नौबत हम पर कभी आ ही नही सकती. और उधार लेते रहने की आदत भी भविष्य मे गले का फंदा बन सकती है. कमसे कम अपने स्वाभिमान को ठेस तो जरूर पहूचायेगी ही. यह सब छोटी मगर बडी बाते मुझे एच. एम साहब से सिखने को मिली. जिनको अपनाने से हम जल्दी से "सेल्फ" बन जाते है.
मेरे नोकरी के साथ गोरक्षण की देखरेख अच्छी तरह से चल रही थी. उसी तरह फिजिकल फिटनेस के लिये सुबह शाम दंड बैठको का व्यायाम और केले दुध रोटी खाकर ही मै फिट रहता था. नोकरी पर स्कूल मे जाते हुये रास्ते के दोनो तरफ खारे मिठे की कई दुकाने लगती थी, परंतु कभी भी मेरा मन उन होटलो मे जाकर कुछ खाने को नहीं हुआ. हाँ मेरे मित्र को ये सब चिजे चल जाती थी. उसने इन चिजो के बारेमे मुझे कभी आग्रह नहीं किया. वह शाकाहारी था लेकिन उसे फल फलावर नही चलते थे. मै हर दिन केले लाकर खाता था. बाकी दुसरे फल खाने की मेरी भी इच्छा नहीं होती थी. इस बात पर मेरा मित्र मुझे चिढाता भी था की, "किसी व्यक्ति ने उसके किसी कामके बदले मे तुम्हारे सामने केलो की एक फनी रख दियी तो समझ लो, उसका काम हो गया". इस बात पर मै हसते रहता था. उसके सारे मित्रो मे भी मेरी इस तरह की ख्याती बन गयी थी. जिसका मुझे गर्व भी था.
एप्रिल माह मे मुझे झेड पी के टिचरशिप की अपाॅइमेंट ऑर्डर मिल गयी थी. मेरी पोस्टींग गव्ह. हायर सेकंडरी स्कूल धारनी को हुयी थी. बीस जुन को स्कूल खुलने के दिन मुझे ज्वाईन होनेको कहा गया. सो अब मेरे कामोमे मुझे स्पिड लानी पडी. शादी भी फिक्स करना था और सर्विस पर ज्वाईन भी होना था. अभी की सर्विस भी छोडना था. इस बातका पता जब मेरे एच एम साहब को लगा तो वे बहूतही नाराज हुये. वे मुझे छोडने के लिये तैयार नही थे. क्योंकी मेरे जैसा फुलफिल हँड अब उन्हे मिलना मुश्किल था.
To be continued....... धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे. परसापूर. (महाराष्ट्र)🙏🙏🙏
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें