मेरी यादें : भाग 47 (सैतालीस) :- मेरी नोकरी का पहला साल और गोरक्षण की देखरेख : 1968-69 के दरम्यान घटी सत्य घटनाओ पर आधारित घटनाये (Part Two)
प्यारे पाठको, पिछले भागमे मेरी यादोमे के माध्यम से, हमने देखा की, मै स्कूल मे एम. एम साहब के बताये हुये काम करनेसे, स्कूल का टिचर स्टाफ मुझसे दूर रहने लगा था. स्कुल मे मै टेबल वर्क संभालते हुये खाली क्लास भी संभालने लगा था. आगे की घटनाये मेरी यादों के माध्यम से हम देखने की कोशिश करेंगे.
गोरक्षण मे मेरे पास बहूत सारे बच्चे ट्युशन पढने आते थे. मै उनसे कोई फीज् नहीं लेता था. उपर से उनकी पढाई बारिकी से करा लेता था. मेरी प्रसिद्धी अच्छे से बढने लगी थी. ट्युशन वाले बच्चों के माता पिता भी मुझे हर संभव सहयोग देना चाहते थे. उनके घरो मे कोई भी मिठी चिज बनी हो, या सण त्योहार हो, तो वहां से मेरे लिये व्यंजनो से भरी खाने की थाली, मेरे ना कहने पर भी आती थी. उन लोगोंके दिलो मे मेरे प्रती जो विश्वास और प्रेम भाव जगा था वह अप्रतिम था. वैसे प्रेम भाव और विश्वास का अनुभव मुझे बाद के जिवन मे यदा कदा ही आया हो. बच्चों के व्यतिरिक्त उन माता पिताओ का मुझसे जो लगाव पैदा हो गया था उसको तोड नहीं थी. उनकी उन भावनाओ का दर्शन आज भी अंतर्ध्यानमे मै जब बैठता हूँ तो, मुझे उसकी झलक सी दिखती है. वे लोग मेरे सगे रिस्तेदार तो नही थे, लेकीन उन्होने जिस भावनाओके सिमा रेषा को लांघ दिया था उसको तोड नही थी. उन सबके चेहरे आज भी मुझे बारी बारी से दिखते है.
मै जब ग्यारह बजे के दरम्यान गोरक्षण से स्कूल के लिये, निकलता तब, उस एरिया के बच्चों के पिताजी लोग मुझसे अभिवादन करे बिना नही रहते. उनके द्वारा शिष्टाचार का पालन करना एक आदर्श था. आज की स्थिती की तुलना मे इन छोटी छोटी बातो मे भी गहन अर्थ छुपा हुआ है. समय समय की बात है. सब कुछ बदलते रहना ही सृष्टी का गुणधर्म है. गोरक्षण मे थंड के दिनोमे सुबह दंड बैठके मारता था. एक बार सुबह मे ही अध्यक्ष महोदय गोरक्षण की गायो का दर्शन लेने वहां आ पहूचे. थंड के दिनोमे मेरा कम कपडो मे रहना उन्हे बडा ही कुतुहल जनक लगा था. "इस बरफ जैसी थंडी की स्थिती मे तुम्हे थंड नहीं लगती है क्या ?" उनके इस सवाल पर मैने उन्हे "बिलकूल ही नही" कहकर सिर से नकार कह दिया था. वे अचरज मे पडे बिना नहीं रहे. क्योंकी उन्हे उस वक्त बहूत ही थंड महसूस हो रही थी. उस समय वे मेरा लोहा माने बगैर नही रहे. मेरी फिजिकल क्षमता देखकर ही तो लोग मुझे पहलवान भी कहने लगे थे.
दशहरे दिवाली के अक्तूबर महिने मे जिला परिषद मे टिचर की भर्ती की समाचार पत्रोमे जाहिरात निकली. मेरे लिये एक और सरकारी नोकरी का चान्स था. उसे मै छोडना नहीं चाहता था. मैने देर न लगाते झेड पी के टिचर भर्ती की अर्जी भेज दि और तैयारी मे जुट भी गया. जल्दी ही उसका भी इन्टरव्हू निकला था, जिसमे सिर्फ नाम पता पुछने पर ही मेरा सिलेक्शन हो गया. क्योंकी मैने ट्रेनिंग लेकर फर्स्ट क्लास मिलाया हुआ था. मुझे फेल होनेका डर तो था ही नहीं. अब मेरा काॅन्फिडेन्स और भी बढ गया था. सिर्फ अपाॅइमेंट ऑर्डर आनेकी राह देखना था.
To be continued.........
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे.
परसापूर. (महाराष्ट्र)🙏🙏🙏
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)
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