"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें : (Meri Yaden) भाग 48 (अडतालीस): मेरी नोकरी का पहला साल और गोरक्षण की देखरेख (सत्य घटनाओ पर आधारित - 1968से 70 तक की घटी घटनाये) ( Part Three)

          मेरी यादें  : (Meri Yaden) भाग 48 (अडतालीस): मेरी नोकरी का पहला साल और गोरक्षण की देखरेख (सत्य घटनाओ पर आधारित - 1968से 70 तक की घटी घटनाये) ( Part Three)

              प्यारे पाठको, पिछले भागमे मेरी यादों के माध्यम से हम ने देखा की, मेरा गोरक्षण मे रहते हुये कामकाज अच्छे से चल रहा था. स्कुल मे भी मेरा होल्ड अच्छी तरह से तैयार हो गया था. साथमे मै झेड पी टिचर की इंटरव्हू मे भी पास हो गया था. सिर्फ अपाॅइनमेंट ऑर्डर आने की राह देखना था. अब आगे की घटी घटनाओ को हम देखेंगे. 

               उस समय मुझे हर महिने की तनखा एक सौ सैतालीस रूपये मिलती थी जिसमे से मै हर माह का सब खर्चा निपटा कर सत्तर रूपये मे चौबीस कॅरेट वाली तीन ग्रॅम  सोनेकी अंगठी ज्वेलर्स से बनवा लेता था. यह क्रम मै जब तक  इस नौकरी मे था तब तक पालन करते रहा. घर पर मुझे पैसे भिजवाने की कोई आवश्यकता नही थी. सिर्फ मेरा खर्चा मुझे चलाना होता था. उसे मै अच्छी तरह निभा रहा था. साथ मे कुछ बचत भी कर रहा था. मेरे घर के सब लोग मुझसे खुश थे. उन्होने अब मेरे लिये लडकी ढूंडना भी शुरू कर दिया था. सिधा बोलो तो, लडकी वाले ही मध्यस्थो के माध्यम से संपर्क करना चाहते थे. हम भी उस समय उनसे भाव खाना चाहते थे. हम लडकी वालोसे तरह तरह के बहाने बनाकर आगे आगे चला रहे थे. क्योंकी उस जमाने मे सरकारी नोकरी वाला लडका सौ मे एक ही होता था. उस एक लडके के लिये लडकी वालो मे होड सी लग जाती थी. जिस से हमारी सोशियल व्हॅल्यू हम बढा रहे थे और तौल भी रहे थे. जहाँ सब बाते बराबर दिखती थी वहां की लडकी हमे पसंद नहीं आती थी और जहां की लडकी ख्याल मे आ सकती थी वहां बाकी का हमे पसंद आता नही था. उस जमाने मे हमारे समाज मे माता पिताके द्वारा सुझाये गये स्थल को ही सम्मती देकर शादीयाँ की जाती थी. इस बारेमे मुझे थोडी छुट मिली थी. क्योंकी मेरे पिताजी ब्राॅड माइंडेड व्यक्ती थे. उन्होने मेरी पसंद की लडकी से ही शादी करा देने का निश्चित किया था. अब लडकी पसंद आना मेरे पर ही डिपेंड था. इस विषय मे मुझे  कोई भी अनुभव न होने से मैने मेरे जिगरी मित्र का सहयोग लेना ही उचित समझा.
             गोरक्षण मे मै अपने हात से बना खाना खाता था. बर्तन साफ करने पाच रूपये महिने से एक कामवाली आती थी. वह दोनो समय के बर्तन सुबह एक बार आकर मांज धोकर जाती थी. एक बार उसे कोई कारण से एक सप्ताह के लिये कामपर आना नही था. मैने उसके गैरहाजिरी का फायदा तंदुरुस्तीके लिये उठानेका निश्चय करके एक सप्ताह के लिये बर्तन धोकर आलमारीमे रख दिये और रोटी खानेकी जगह मै केले, दुध, अमरूद और फल्ली दाने खाकर रहना चाहता था. मेरी बाकी दिनचर्या पहले जैसी ही थी. मै यह देखना चाहता था की, बिना रोटी खाये सिर्फ फल दुध पर हम कैसे रह सकते है ?  इस तरह फल दुधपर कोई भी कमजोरी न आते हुये मै अच्छी तरह रहा था. आखिर मे सातवे दिन एच. एम साहबने मुझे स्कूल के खेल कुद वाली टिम का इंचार्ज बनाकर जिला लेव्हल के सिटी मे भेज दिया. वहां मै जाना नही चाहता था. लेकिन एच. एम साहब का मै विश्वासू होनेसे मुझे टीम इंचार्ज बनना ही पडा और पचास बच्चों की टीम लेकर जाना पडा और टीम को जिताकर भी लाना पडा था. वापिस आनेपर एच. एम साहब ने मेरा सबके सामने अभिनंदन भी किया था. मै इस प्रसंग को कभी भुला नही सकता. क्योंकी मुझे यह सब अपेक्षित ही नही था. फिरभी मैने जानेके लिये हाँ किया और कर्तव्य पूरा करके ही लौटा था.
                                                                          To be continued........
                                       धन्यवाद. 
                                                                                                                                         श्री रामनारायणसिंह खनवे 
                                                                                                                                         परसापूर. (महाराष्ट्र)🙏🙏🙏
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)

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