"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 37 (सैतीस) (सत्य घटनाओ पर आधारित ) : मेरे हरिनी गाय का नाती काला बैल.....(समय 1960-65 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये) (Part One)

              मेरी यादें  (Meri Yaden) :- भाग 37 (सैतीस) (सत्य घटनाओ पर आधारित ) : मेरे हरिनी गाय का नाती काला बैल.....(समय 1960-65 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये)  (Part One)
                    प्यारे पाठको, मेरी यादों के माध्यम से, पिछले भागमे हमने देखा की, मुझे जिले के शहरमे नोकरी लगी है. मै फुरसत मे वहां के वकील काकाजी से मिलने जाता था. वहां के थियेटर मे मैने एक फिल्म देखी थी. उसमे के एक गीतने मुझे  बहूत ही इंप्रेस किया था. हो सकता है की, भविष्य की घटनाओ के मुलमे उसी गीत का असर हुआ हो ऐसा मुझे लग रहा था. आगे की घटनाये देखने से पहले मुझे कुछ इंटरेस्टींग और रोचक घटनाये याद आने लगी है. उन्ही यादों को हम ताजा करने की कोशिश करेंगे. 
             हमारे घर उस जमाने मे एक जान बडी ही मान पान की और महत्त्वपूर्ण हो गयी थी. उसका होल्ड और दरारा पूरे गाँव परिवारो पर पडा हुआ था. वह जब रास्ते से आते जाते रहती तो किसकी मजाल नहीं होती की, उसके सामने कोई खडा हो जाये. सामने खडे कोई भी बाहर के व्यक्ती को उसने शिंगो पर लेकर फेक ही दिया समझो. घरके किसी भी व्यक्ति को उससे कोई तकलिफ नहीं होती थी. गाँव वाले उसके इस स्वभाव गुण से अच्छी तरह परिचित थे. इसी कारण उसके रास्ते मे आने की हिंमत उसके अंत तक कोई भी नहीं कर सका था. उसे हम "हरिनी गाय" कहकर पुकारते थे.  मेरे पिताजी ने कवळी से गुफी हुयी एक सुंदर सी रस्सी उस के गलेमे बांध रखी थी. "हरिनी गाय" को पता था की, गले के कंठे को हात लगाने के अधिकारी सिर्फ घर के ही मेंबर हो सकते है. इस कारण हम सब सदस्य गले के कंठे को पकडकर "हरिनी गाय"  को उसकी जगह बताते थे. उसे भी तो उसके हक की कोई जगह आवश्यक थी ना. उसने हमारे बाडे को उसके बाल बच्चों से भर दिया था. मराठी मे, गाव के बोली मे बोले जाने वाली एक कहावत भी है. "एकाचे एक्कीस, पाचाचे पन्नास, घरचा धनी, राज करो". उस जमाने मे हर गाँव मे गैया ,भैसे चराने वाले चरवाहे (ढोरकी) इसी कहावत को दोहराते रहते है और घर मालिक को दुआ देते रहते है. हमारे घर के बाडे को एकाचे एक्कीस, पाचा चे पन्नास हो जाने की दुआ सौ परसेंट फिट पडी थी. "हरिनी गाय" बाडेकी मुखिया थी. उसके बगैर उस समय बाडे की कल्पना करना शुन्य जैसी होती थी. "हरिनी गाय" बछडे को दुध पिलाकर दो सेर दुध हमे देते रहने से भी उसे मुखिया का पद देना उचित लगता था.
            हमारे घर "हरिनी गाय" ने सबसे पहली बारमे एक काले बछिया को जन्म दिया था. उसका रंग काला था. तब मै छोटी उमर का था. हम सब लोग उस बछिया का रंग देखकर थोडे नाराज हो गये थे. फिर भगवान की मर्जी समझकर उसी का अच्छे से संगोपन कर उसे बडा बनाया था. वह आगे "काली गाय" नाम से पहचाने गयी थी. "काली गाय" के जैसी गरीब स्वभाव की गाय उस जमाने मे कम ही देखने को मिलती थी. वह इतनी गरीब थी की, कोई बच्चा पिठ पर या पैरो के निचे बैठ भी जाये तो भी उसे कोई फरक नहीं पडता था. महिलाओ की पहली पसंद काली गाय होती थी. क्योंकी बच्चो को लेकर महिलाये "काली गाय" की पुजा करती थी. उसका पुजा मे पहला मान होता था. महिलाये उसकी पूजा करके उसे नैवद्द खिलाते रहनेसे उसे भी महिलाये और बच्चोसे प्यार था. मेरी माँ के साथ मै भी चतुर्थी के दिन काली गाय की पूजा करने जाता था. मेरे ही हात से मै "काली गाय" को नैवद्द खिलाता था. तब से ही "काली गाय" से मेरी पहचान हो गयी थी. 
             "काली गाय" से भी हमारे घर बहूत से बछडे मिले. जब उसे पहला बछडा हुआ था तो उस बछडे का रंग भी काला ही था. मध्यम बांधेके और शांत  स्वभाव वाले उस गोर्हे को हमने बडे ही मानवियतासे बडा किया था. उसके बचपन मे मै उससे बातो से बुलाता था. उसे लाड प्यार देते रहता था. गोर्हा होनेसे उसे आटे का लड्डू खिलाते रहता था. वह भी हमारे आसपास मे ही घुमते रहता था.
To be continued. 
धन्यवाद. 
        श्री रामनारायणसिंह खनवे.
            परसापूर. (महाराष्ट्र).
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)  
             

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