"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादे : - भाग 43 (तिरतालीस) मै टिचर कैसे बना? होस्टेल की दिनचर्या और नोकरी की शुरूवात (सत्य घटनाओ पर आधारित)( मेरी यादों के माध्यम से 1967-68 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये) (Part Five)


मेरी यादे  : - भाग 43 (तिरतालीस) मै टिचर कैसे बना? होस्टेल की दिनचर्या और नोकरी की शुरूवात (मेरी यादों के माध्यम से 1967-68 के दरम्यान घटी हुयी घटनाये)  (Part Five)             
            प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा की, मेरा टिचर्स ट्रेनिंग का कार्यकाल होते आ रहा था. उस दरम्यान वही पर कृषी विद्यापीठ के लिये आंदोलन भी हुआ था. उस समय हम सबने दोनो टाईम दाल चावल की खिचळी खाकर ही दिन पास किये थे. बादमे मेरा दिनक्रम फिरसे अच्छी तरह शुरू हो गया था. अब हम आगे की घटनाये मेरी यादों के माध्यम से देखनेकी कोशिश करके आगे देखेंगे. 
             हमारा काॅलेज रूटीन अब अच्छी तरह  शुरू हो गया था. फायनल एग्झाम भी नजदिक आ गये थे. मार्च महिना चल रहा था और एप्रिल के शुरू मे ही फायनल रिटन एग्झाम होनेवाले थे.  अब मै पूरा ट्रेन टिचर और साथमे पहलवान भी बन गया था. उस ट्रेनिंग के दौरान मुझे जो भी समय मिला था, उसका मैने पुरा लाभ उठानेकी भरसक कोशिश कियी थी. जिसके परिनाम मेरे काॅन्फिडेन्स और पर्सनालीटी से झलक रहे थे. शुरू के दिनोमे मेरा वजन 55 kg. था जो अब 60 kg. हो गया था. इस ग्राफ के आगे मै अब तक जा नही सका हूँ. अब धुपकाले की शुरूवात भी हो गयी थी. हर इंसान के जिवनमे तारीख, समय और क्षण एक बार ही आते रहते है. आनेवाले क्षण की किंमत जानकर हम उसका उपयोग अगर अच्छे कामोके लिये करते रहे तो हमे कभी भी पछताना नहीं पडेगा. मार्च के आखरी दौरमे हमारा फायनल लेसन डेमाॅनस्ट्रेशन भी अच्छी तरह से हुआ था. मेरा लेसन डेमाॅनस्ट्रेशन बहूतही अच्छा, उत्कृष्ट रहा था.  परिक्षक महोदय खुशी जाहीर कर रहे थे. मेरी तैयारी फुल थी. मेरा काॅन्फिडेन्स भी कम नहीं था. फिर मै क्यों घबराता ?
              सब ट्रेनी टिचर लोगोके बिदाई के लिये मेस मे आखरी रविवार के दिन सेंड ऑफ का कार्यक्रम रखा था. जिसमे बहूत सारे खानेके व्यंजन बनाये गये थे. और खानेवालो को जी भरके परोसे भी गये थे. मुझे तो सब व्यंजनो मे सिर्फ गुलाब जामून ही अच्छे लग रहे थे. मैने उस दिन, गुलाब जामून खानेका दिलसे आस्वाद लिया. जिसे मै आज तक, पचास साल के बाद भी भुला नहीं हूँ. उन गुलाब जामूनो की खशबू आज भी मेरे जहन मे वैसी ही है, जैसी सेंड ऑफ के दिन मुझे आ रही थी. उस दिन खाये गये गुलाब जामूनो की टेस्ट मुझे फिर कभी नही आयी थी. आखिर एप्रिल माह मे फायनल रिटन एग्झाम भी हो गयी. शासन की ओरसे हमे मिलने वाले स्टायपेंड की आखरी किस्त भी हमे दे दि गयी और हमने काॅलेज लायब्ररीका  लेना देना करके हम सब ट्रेनी लोगोने वहां से बिदाई लियी. बिदाई के कुछ समय पहले सब ट्रेनी मास्टर लोगोंका ग्रुप फोटो भी लिया गया था. जिसे देखकर मुझे आज भी उन सुहाने दिनोकी यादे आती रहती है. "वो भी क्या दिन थे" ? अनासायास ही मेरे मुँह से निकल पडता है.
             एक देड माह बाद मेरा रिझल्ट भी आ गया था. मै मास्टर की फर्स्ट क्लास मे पास हुआ था. उस समय मेरी पांचो ऊंगलियाॅ घी मे थी. परंतु सर कढाई मे नहीं था. मै गाँव के पोस्ट मास्टर का बचपन का दोस्त था. हर दिन मै उसी के साथ रहता भी था. मैने एक पोस्टकार्ड पास वाले शहर के हेड मास्टर साहब को नोकरी की पुछताछ के दृष्टीसे भेज दिया था और उसमे मै फर्स्ट क्लास पास होनेका जिक्र किया था. भगवान की कृपा से वे हेड मास्टर गुणोके पारखी निकले थे. वे गणित मे एम. ए. थे, साथमे वकील भी थे और हायस्कूल कमिटीमे सचिव पद पर भी कार्यरत थे. उन्होने मुझे तिसरे दिन ही पत्र भेजकर त्वरित मिलने बुलाया था. मै दुसरे ही दिन उनसे मिलने उनके हायस्कूल मे पहूँच गया. मेरे साथमे मेरा ट्रेनिंग का जिगरी मित्र भी आया था, जो उसी शहरका रहनेवाला और उसी हेड मास्टर साहब का माजी विद्यार्थी भी था. मित्र को मेरे साथमे देखते ही उन्होने पुछ लिया की, एस. पी. किधर आये हो. "एस.पी." यह उस मित्र के नाम का शार्ट फार्म था. मेरे मित्र ने उन्हे बता दिया था की, "वो मेरे साथमे आया है और मुझे उन्होने ही (हेड साहब ने) नोकरी के बारेमे बुलाया है". "मेरा मित्र भी है". एच. एस. साहाब ने फिर कुछ नहीं पुछा. ("एच. एस." यह हेड मास्टर साहब के नाम का शाॅर्ट फार्म है).
           एच. एस. साहाब ने मुझे नोकरी मिलने के लिये अर्जी टाईप करने को कहा. असलमे उन्हे मुझमे यह देखना था की, मै हर हुन्नरी हूँ या नहीं. मै तो पुराना टायपिस्ट था ही. मैने थोडा भी समय न लेते हुये, टाईप रायटर मे कागज डालकर फटाक् से अर्जी तैयार करके एच. एस. साहब के टेबल पर रख दियी. साहाब ने पढी तो वे दंग रह गये, साथमे खुशी भी जाहीर कियी थी. उन्होने मेरे दोस्त से कहा की, "मेरी सोच के बाहर तेरा दोस्त निकला है. उसे कब से जाॅइन कराता है ?" दोस्त ने मेरी सलाह लेने पर साहब से मै दुसरे ही दिन जाॅइन होने वाला हूँ यह बताया और मै दोनोसे बिदा लेकर सिधे घर पहूँचा था. यह खुशी की खबर मेरे पुरे मोहल्ले मे जल्दी ही पहूच गयी थी. कुछ लोग मुझसे मिठाई मांग रहे थे, तो कुछ थोडे लोग उनके बच्चों की तुलना मुझसे करके अपने मनकी नाराजी छुपा रहे थे. आखिर इसमे मेरा क्या दोष था ? " हर दिन जो मेहनत करेगा, वह तो फल पायेगा ही ना !". 
                                                                To be continued........
                                          
                                       धन्यवाद. 
                                                              श्री रामनारायणसिंह खनवे.
                                                               परसापूर. (महाराष्ट्र)🙏🙏🙏
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 119 (एक सौ उन्नीस) :- लाखो तारें आसमान मे .....देखके दुनिया की दिवाली ... दिल मेरा चुपचाप जला ......(1987-88 के दरम्यान घटी सत्य घटनाओं पर आधारित मेरी यादें) (Part Two)

"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 118 (एक सौ अठराह) :- "लाखो.. तारे आसमान में, ... देख ..के दुनिया की दिवाली, दिल मेरा चुपचाप जला ......(1987-88 मे घटी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) (Part One)