मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 49 (उनपचास) : मेरी नोकरी का पहला साल और गोरक्षण की देखरेख...(सत्य सत्य घटनाओ पर आधारित : 1969-70 की घटी घटनाये) (Part Four)
प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा की, मैने एक सप्ताह के लिये फल दुध और फल्ली दाने खाकर रहने का निश्चय कर लिया था. इस बिचमे ही एच. एम साहब ने मुझे स्कूल की टिम जिला क्रिडा महोत्सव मे खेलने ले जाने के लिये भेज दिया. मैने उस समय स्कूल की टिम को जिले से जिता कर भी लाया. इसलिये एच. एम साहब ने मेरा सबके सामने अभिनंदन भी किया. आगे की घटनाये मेरी यादों के माध्यम से अब हम देखेंगे.
मेरा जिगरी मित्र हर दिन पाच बजे के बाद अब मुझे मिलने आता था. मै मेरी उलझन भरी समस्याये उसके साथ चर्चा करके उसका हल निकालता था. मेरा मित्र मुझसे उम्र मे आठ दस साल बडा था और बाल बच्चे वाला अनुभवी इन्सान था. उसका मित्र परिवार और भी बडा था. उन सब के मै संपर्क मे रहता था. उन सब के अच्छे बुरे प्रसंगो मे मै मेरे मित्र के साथ उपस्थित रहता था. मेरा मित्र मेरा जिगरी था. उससे मेरी कोई भी बात छिपी नही थी. उसके भी अच्छे बुरे प्रसंगो की मालूमात मुझे उसने करा दियी थी. उसके सब घरवाले मुझे उनके घरका सदस्य समझकर ही ट्रिट करते थे. बाहर गाँव के उसके रिस्तेदारी मे के लोग भी मुझे अच्छे से मान सन्मान देते थे. मेरी और मेरे जिगरी मित्र की एक अलग ही दुनिया बन गयी थी. मेरे जिवन मे मुझे बहूत सारे मित्र मिले लेकिन इसकी बात कुछ अलग ही थी. इस जिगरी मित्र ने कभी भी मेरे साथ दुजाभाव नही किया. मेरे दिलमे उसने जो जगह बनायी उसको मै कभी भुला नही सकता. "अपने अच्छे दिन हो तो मित्र साथमे, और बदकिस्मती से अगर बुरे दिन आ जाये तो मित्र की छाया भी नही दिखेंगी", इस मित्र ने यह सब बाते झुटी ठहरायी थी.
हमारे स्कूल के एच. एम साहब स्वभाव से एकदम कडक और शिस्तप्रिय इंसान थे. जिंदगी जिने के उनके कुछ वुसूल थे. उन्ही वुसूलो पर चलने मे वे अपनी भलाई मानते थे. वे गणित मे एम. ए. और साथ मे एल एल बी भी थे. उनके बराबरी वाले लोग उन्हे वकिल साहब के नाम से पुकारते थे. हायस्कुल के एडमिनिस्ट्रेशन मे वे बहूत ही कडक और शिस्तप्रिय इंसान थे. स्कुल की कमिटी मे वे सचिव के पद पर थे. वे कामकाज मे किसी की भी झेप नही खाते थे. क्योंकी कोई भी गलत काम करना उनका स्वभाव गुण नहीं था. मुझे उनका यह गुण बहूतही अच्छा लगा था. स्कुल मे ऑडिटर इयरली रेकाॅर्ड चेक करने जब आते थे तब वे उनके पास कभी नही आते थे. "सब कुछ क्लर्क से पुछो. अलमारीमे फाईल्स रखे है. मुझे किसी भी फाईल्स की जानकारी नही है". ऑडिटर भी हमारे एच. एम साहब से डरके ही रहते थे. बिचारे ऑडिटर चुपचाप मे जल्दी से स्कूल की फाईलो का चेकींग निपटाकर चले जाते थे. दुसरी जगह इन्ही लोगो की बडदास्त रखते रखते, नाक मे दम भरे बगैर नही रहता था.
मेरी नोकरी के शुरू के दिनोमे एक बार मेरा यह जिगरी मित्र मुझे स्कूल मे मिलने आया. उसके साथ दस मिनिट बात करने पर मै जब अपने टेबल पर आ बैठा, तब एच.एम साहब ने मुझे सहज मे पुछा की, "तुम्हारे मित्र का तुमसे क्या काम था ?" "वह सहज ही मिलने आये थे". ऐसा मेरा जबाब सुनने पर, एच. एम साहब ने कहा की, "मित्रता टिकानी है तो मित्र को पैसे उधार मत देना." उनकी यह राय सुनने पर मुझे बहूत ही बुरा लगा था. क्योंकी मेरा मित्र जिसका नाम एस.पी था, मेरे उसके गहरे संबंध थे. यह बात एच. एम साहब को भी मालूम थी. मित्र से संबंधित उनकी राय मुझे अच्छी नहीं लगी, परंतु मै उस समय कुछ बोल नही सका. उसी मित्र ने मेरे अच्छे बुरे प्रसंगो मे बडे ही हिंमत के साथ मेरा साथ दिया. वो भी ऐसे समय, जब मेरी सावली भी मुझसे दूर भागती नजर आ रही थी तब. इतनी बडी दुनिया मे मेरा सच्चा साथी कौन ? तो सिर्फ यही, एक अकेला, मेरा जिगरी मित्र एस.पी.
To be continued.
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे.
परसापूर. (महाराष्ट्र)🙏🙏🙏
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे. )
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