मेरी यादें (Meri Yaden) भाग 65 (पैसठ) :- जब मेरी इलेक्शन ड्युटी लगी थी.....( 1971 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित घटनाये.) (Part One) प्यारे पाठको, पिछले भाग मे हमने देखा की, मेरे नोकरी के गाँव "पी एम" साहिबा का दौरा होनेसे गाँव ने "नगरी" का रूप धारण कर लिया था. हमारे नगरी का महत्व अब जिलेमे अव्वल हो गया था. आगे की घटनाये मेरी यादों के माध्यम से अब हम देखेंगे.
"पी एम" साहिबा का दौरा होनेके बाद, आठ दिनमे हम सब लोग पूर्ववत् कामधंदे मे लग गये. अब "एप्रिल" माहमे बच्चों के एग्झाम की तैयारी भी करनी थी. बच्चे भी पढाई करने लगे थे. हम टिचर लोग भी बच्चों के रिझल्ट के लिये प्रयत्नशिल थे. एक महिना भी नहीं हुआ की, स्टेट असेंब्ली का "इलेक्शन प्रोग्राम" अचानक ही लग गया. जिसमे हम सब टिचरो की कही ना कही ड्युटी लगी थी. मेरी भी "पोलींग ऑफिसर" करके "गोंडवाडी" नामके गाँव मे ड्युटी लगी थी. उसके लिये मुझे दो बार ट्रेनिंग भी लेनी पडी थी. इसी बिच मेरे "ससुर" साहब ने आकर, मेरी पत्नी को प्रथम डिलीव्हरी के लिये नागपूर साथमे लेकर गये थे. अब मुझे और छोटे भाई को भोजनालय से टिफीन लाना था. छोटे भाई "सीजी" की नववी की एग्झाम जल्दी ही होने वाली थी. पंधरा दिनोमे वह छुट्टीयो मे गाँव जाने वाला था. मुझे रिझल्ट तक नोकरी की "नगरी" मे ही रहना था. होने वाली सब बाते मेरे लिये नयी थी. नोकरी नयी थी. गाँव नया था. बच्चों के एग्झाम नये थे. इलेक्शन प्रोग्राम नया था. होली का त्यौहार पिछे पड गया था. जो मेरे लिये नया था. थंड गायब हो गयी थी. धुपकाले की धुप चटकनी शुरू हो गयी थी. महुओ के पेडोसे भिनी भिनी महक वातावरण मे बिखरी सी लग रही थी. चारोली के पेडो को लगे गुच्छे देखकर मन अनासायास ही उसे तोड खानेको करता था. हरा होला खाने की मजा कुछ और ही आती थी. बच्चों के पालक हमसे मिलने आनेपर अपने साथ "हरे चनेका होला" लाने नहीं भुलते थे. इस प्रकार की आत्मियता हमे देखने मिलती थी. यहां के लोग अनपढ जरूर थे लेकिन आत्मीयता रखने वाले थे. जिसका मै यहां नये से अनुभव ले रहा था. मन को अंदर से खुशी भी मिल रही थी. बच्चों की एग्झाम होकर रिझल्ट लगने वाले थे. छोटा भाई "सीजी" भी परिक्षा देकर गाँव चला गया था. अब मै अकेला ही रह गया था. सिर्फ मेरे मित्र "युके" की साथ थी. आखिर बच्चों के रिझल्ट भी लग गये. हम दोनो मित्र रिझल्ट मे बाकी लोगोसे आगे ही थे.
स्टेट असेंब्ली के इलेक्शन की तारीख भी आ गयी थी. पोलींग पार्टी अपनी अपनी जगह पहूच गयी थी. मै भी पार्टी के साथ दो दिन पहले ही "गोंडवाडी" सेंटर पर पहूच गया. मेरे लिये सब नया था. मै हर चिज को बारिकीसे परख रहा था. हम सब पार्टी का मुकाम स्कूल मे ही था. हमारी भोजनकी व्यवस्था स्थानिक लेव्हल पर कियी गयी थी. गाँवोमे भोजन व्यवस्था की परंपरा लोग पुर्वापार से चलाते आ रहे है. उसे पुरा करने मे ही उन लोगोंको अलौकिक आनंद मिलता है. जिसे यह नागवार मालूम पडे, वह खुदकी व्यवस्था अलगसे भी कर सकता है. मेरी बुद्धी को भी नहीं पटता लेकीन मेरे पास दुसरा पर्याय भी नही था. मै उन सब के साथ मिला रहा. इलेक्शन का दिन निकला. सुबह से वोटिंग शुरू हो गया. करिबन नऊ बजे उस विधानसभा सिट के उमेदवार सेंटर पर हालात जानने आये. हमे हमारा काम छोडकर उनके प्रती "नतमस्तक" होना, दुसरे उमेदवार के प्रति अन्याय किये जैसा मुझे लगने लगा. फिरभी बाकी सब के देखा देखी मुझे जगह पर खडा होना पडा. इस प्रसंग ने मेरे स्वाभिमान को गहरी ठेस पहूँचाई. बात दिखने मे छोटी है, लेकिन गहरा अर्थ रखती है. आत्मा की आवाज सुनने का सराव जिसे हो जाता है उसे कुछ कहनेकी जरूरत ही नहीं होती. इस तरह इलेक्शन प्रोग्राम ने मुझे जिवन की कुछ नयी दिशा दिखायी थी.
To be continued.........🙏🙏🙏🙏🙏
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे.
परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)
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