मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 64 (चौशष्ठ) : हमारे देश की "पी एम" का भाषण जब स्कूल ग्राउंड पर हुआ था...... (1971 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित घटनाये) (Part Three) प्यारे पाठको, कल तक हमने देखा की, देश की "पी एम" का हेलिकॉप्टर आसमान मे चक्कर लगाने के बाद "हेलिपॅड" की तरफ गायब सा हो गया. परंतु थोडी ही देरमे "पी एम" साहिबा का खुले जिप से स्कूल के ग्राउंड पर आगमन हुआ. शुरू मे "आदिवासी जनजातिय" संस्कृती के नृत्योंकी झाकियाँ दिखाने के बाद, हमारे बच्चों का "योगा डेमाॅनट्रेशन" हुआ. राज्यमंत्री साहब ने "प्रस्तावना" पर भाषण किया. आगे की घटनाये अब मेरी यादो के माध्यम से हम देखेंगे.
राज्य के मुख्यमंत्री महोदय के हाथसे "पी एम" साहिबा का स्वागत होने के बाद उनका भाषण हुआ. बादमे जनता जिनके भाषण को सुनने आयी थी, वे सन्माननिया "पी एम" साहिबा भाषण करने जब आयी तो, सब तरफ सन्नाटा छा गया. पूरे स्कूल ग्राउंड पर छोटे छोटे "कठडोमे" जनता बटी हुयी थी. हर "कठडे" पर पुलीस का वाॅच था. जनता मे "पी एम" साहिबा को देखने की उत्सुकता चरम सिमा पर थी. अभी अभी हमारे देशकी फौज ने "बांगला देश" को आझाद करानेमे मदत कियी थी और जित भी हासिल कियी थी. देश की संपूर्ण बागडौर "पी एम" साहिबा के हाथमे होनेसे जनता उन्हे ही "देश के राजा" के रूप मे देख रही थी और प्रतिसाद भी दे रही थी. जिधर देखो उधर "पी एम" साहिबा की "जय" के नारे लग रहे थे. "पी एम" साहिबा का भाषण बडा ही जोशपूर्ण और भावना प्रधान हुआ. भाषण सुनने आयी सब जनता जैसे भुख प्यास भुल गयी थी. सब को "देशके नेता" को देखने सुनने की "चाहत" थी. वे सब "पी एम" साहिबा को आँखोमे बसा लेना चाहते थे. आखिर उनके मन की मुराद पुरी हुयी. सब के चेहरे प्रसन्नता से ओतप्रोत हो गये. ऐसे मे "पी एम" साहिबा का भाषण कब खत्म हुआ, इसका पता ही नही चला. सब जनता ने उन्हे "हाथ हिलाते" हुये बिदायी दियी. थोडी देर के लिये पुरा इलाखा जैसे "रूक" सा गया था, जिसमे अब भाषण खत्म होनेके बाद, जनता की "चहल पहल" बढ गयी थी. हर शख्स प्रसन्नता से सराबोर हो गया था. जिस पुंजी को साथ लेकर हर कोई आगे बढना चाहता था.
इस दौरान मेरे घर हमारे मौसेरे ससुर दो दिन पहलेसे आये थे. मुझे उनकी खातिरदारी भी करनी थी. साथमे कार्यक्रम के मॅनेजमेंट की तरफ भी ध्यान देना था.
गाँव की सब्जी समाप्त हो गयी थी. "खंडवा बरहानपूर" से सब्जी के ट्रक बुलवाकर बेचे जा रहे थे. हर सब्जी व्यापारी दुगने भाव से सब्जी बेचकर हाथ आया मौका छोडना नही चाहता था. सब ने समय का भरपूर लाभ उठाया. परंतु कुछ भी हो गाँव ने पुरानी पहचान निकाल फेकी थी और नया वेश परिधान कर एक नयी "पहचान" बना लियी थी. जो भविष्य मे होनेवाले अगले विकास मे मिल का पथ्थर साबित हुयी. मेरे "नोकरी के गाँव" की "नगरी" कब बनी इस बातका मुझे पताही नहीं चला. शासकिय यंत्रणा का जिला मुख्यालय हमारी नगरी अपनी ओर खिचे चली आ रही थी.
कालाय् तस्मो नमः
To be continued........🙏🙏🙏🙏🙏
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे
परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)
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