मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 89 (Eighty Nine) :- मेरे मंझले पिताजी के लिये, एक छोटी सी दुर्घटना बनी जानलेवी ...... (1979-80 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) (Part One) प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा की, मैने मोटार सायकिल चलाना सिखा और आठ दस दिनो बाद मै खुद के बल पर, गाडी से बाहर गाँव जाने लगा. गाडी पर साथ मे, दोनो मे से कोई एक मित्र मेरे साथ जरूर रहता था. और आगे हम देखेंगे उन रोचक घटनाओ को, जिन्हे आपने इसके पहले कभी देखा सुना नहीं होगा. आशा करता हूँ की, आप उन घटनाओ को पढकर एक नये ही आनंद की सैर कर रहे होंगे. अब आगे ........ मेरे छोटे भाई "सिजी" की शादी निपटाकर हम घर परिवार के सदस्य थोडे सुस्ता रहे थे. उन दिनो की शादी का कार्य घरमे निकलने पर परिवार के हर सदस्य पर, थोडा बहूत कामो का भार आ ही जाता था. उस जमाने मे, शादी का पुरा इव्हेंट मॅनेजमेंट कंपनी वालो को देने का कोई चलन नहीं था. शादी के मंडप से लेकर रसोई की तैयारी "करना कराना" और फिर मेहमानो को "पंगत" मे बिठाकर खाना खिलाना, इन कामोमे बहूत से लोगों का सहयोग लिये बिना, एक अकेला घरवाला कुछ नहीं कर सकता था. उस जमाने मे, समाज मे हमे जो "भाईचारा" देखने को मिलता था, उसके पिछे यही कारण रहता था की, कार्य प्रसंगोमे समाज के हर सदस्य को हात बटाकर सहयोग देनेका, फर्ज बनता था. क्योंकी भविष्य मे उनके भी घर आनेवाले कार्य प्रसंगो मे दुसरो के सहयोग की भी अपेक्षा रहती थी.
"सिजी" के शादी को आठ दस दिन हुये होगे, दोपहर चार पाँच बजे हम लोगोंको बाहर से दुर्दैवी संदेशा मिला. संदेशा सबकी चिंता बढाने वाला था. मंझले पिताजी निम के पेड से गिरकर निचे पडे कराह रहे है. हम सब लोग खेतके उस पेड के निचे जब पहूँचे तो देखा की, मंझले पिताजी निचे जमिन पर पडे कराह रहे है. बास की सिडी निमके पेड को लगी थी. निम से तोडी हुयी कुछ डालीया भी पेड के निचे दिख रही है. हमने मंझले पिताजी को वारदात के बारेमे जब पुछा तो, उन्होने बताया की, दोपहर तीन बजने पर म्हैसी के लिये निम की डालिया तोडने वे निमके पेडपर चढे थे. कुछ डालिया तोडी भी, परंतु बादमे हवा का झोका आया और पेडसे घसरकर गिर गये. मंझले पिताजी से उठके बैठना नहीं हो रहा था. उनको बैलगाडी मे सुलाकर घर लाना पडा. बादमे गाँव के डाॅ. साहब को बुलाकर उन्हे सुई गोली भी करायी. जिससे मंझले पिताजी को कुछ देर निंद भी लगी. लेकिन बादमे उन्हे आराम नही हो रहा था. मंझली बडी माँ ने घटना के दिनसे ही चिंता करना शुरू कर दिया. सभी प्रकार के इलाज के बाद भी उनकी तबीयत मे सुधार नहीं हुआ. मंझले पिताजी उस बिमारी की अवस्था से निकल नहीं सके. आठ दिनो के अंदर ही मंझले पिताजी हमे छोड गये.
मंझले पिताजी को कोई बालबच्चे नहीं थे. इस कारण उनका क्रिया कर्म मुझे ही करना पडा. तिसरा दिन, दशक्रिया तेरवी इन सब रिती रिवाजो को मेरा पारिवारिक फर्ज समझकर मैने पार किया. मुझे एक ही बातका दुःख हुआ था की, मंझले पिताजी निमके पेड पर नही चढते तो बच जाते. परंतु होनी को कोई टाल नहीं सकता. जो होना है, वह होकर ही रहता है. हमारे हातमे तो सिर्फ, आये परिस्थिती से मार्ग निकालकर आगे चलना ही होता है. ए मालिक तेरे बंदे हम, तेरे दर पे पडे हमारे कदम ........
To be continued. ...... (क्रमशः)
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे
परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर, कल हम फिर मिलेंगे.)
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