"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 100 (Hundred - सौ) :- मेरे प्रिय मित्र "युके" ने लियी अकस्मात् एगझिट ......(1982-83 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) (Part One)

             मेरी यादें  (Meri Yaden) : भाग 100 (Hundred - सौ) :- मेरे प्रिय मित्र "युके" ने लियी अकस्मात् एगझिट ......(1982-83 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें)  (Part One)
                          प्यारे पाठको, पिछले भाग मे हमने देखा की, मेरे घर बेटे का जन्म हुआ है. मेरी खुशी की कोई सिमा नही रही थी. मैने सोसायटी के दो संचालको को पुणे के सहकारी परिषद के लिये भेज दिया था. इस कारण, अब मै थोडा निश्चिंत सा हो गया था. और अब आगे की घटी कुछ रोचक घटनाओ के बारेमे जानेंगे.
             प्यारे पाठको, हमारी पिछली यादों के संस्करणो मे, गाँव के ही, मेरे एक प्रिय मित्र "युके" के बारेमे कई बार जिक्र आया है. उनका मेरा संपर्क, मेरे बचपन से ही चलते आया था. उनके पिताजी शुरूमे मेरे गुरूजी रहे थे. उनका रहना मेरे बडे पिताजी के मकान मे ही था. बडे पिताजी ने उन लोगोसे कभी मकान का किराया नही लिया. उस जमाने मे खाली मकान किराये पर नही दिये जाते. इन्सानियत और प्रेम के खातिर अपनी जगह नोकरी पेशे वाले लोग रख लिये जाते थे. मेरे बचपन से लेकर गाँव मे का, ज्यादा तर समय "युके" के साथ ही बिता था. सन 1957 से 1982 तक, मेरे जिवन मे पचीस सालो का साथ प्रिय मित्र "युके" का मुझे मिला. "युके" मेरी  "सावली" बनकर मेरे साथ जिये. जिवन की कोई भी छोटी से छोटी समस्या छुडाने मे "युके" ने मुझे साथ दिया था. मेरे अच्छे बुरे समय मे, गाँव के अगर किसीने मुझे साथ दिया हो, तो वह थे सिर्फ "युके". बचपन मे मेरे पर्सनालीटी के प्लस मायनस पाॅईंट बताना, स्कूल की पढाई की समस्याये, घर गृहस्थी की समस्याये, मार्केट मे आनेवाली समस्याये, मेहमानो के सामने मेरा प्रवक्ता बने रहना, उसी तरह शादी ब्याह के प्रसंगो मे "युके" ने मेरा साथ कभी नही छोडा. लोग भी "युके" को मेरा "हम सफर" ही समझते थे. हम "दो जिस्म एक जान" बन गये थे. मुझे कहीं का भी निमंत्रण हो, "युके" की "हाजिरी" कम्पलसरी होती ही थी. मेरा बाया दयना हाथ, बडा भाई, सखा, संरक्षक, मार्गदर्शक, प्रवक्ता सब प्रकार के रोल "युके" ने मेरे लिये निभाये थे. पचास की उम्र होने परभी "युके" की शादी नही हुयी थी. शादी की उम्र मे उनके पिताजी का, उनके लिये इस बातके लिये थोडा दुर्लक्ष हुआ था. धिरे धिरे "युके" की शादी की उम्र और अपेक्षाये खत्म होते गयी. उन्हे अकेले रहकर "जिने" की आदत हो गयी थी. भविष्य के कोई बात की फिक्र करते हुये मैने "युके" को कभी नही देखा. उनके जिवन मे आगे घटी एक "अनहोनी घटनासे" वे अंदर ही अंदर से, कुछ निराश से हो गये थे. उस घटना के बारेमे जाने बगैर, हमे उनकी रियालिटी समझ मे नही आयेगी.
             उसी दौरान, "युके" के बडे भाई के पास, उनके ही समाज वालो के माध्यम से, "युके" के लिये शादी का एक रिस्ता आया था. उनके बडे भाई साहब ने, यह बात मुझे बतायी और शादी के लिये "युके" को तैयार कराने की जिम्मेदारी भी मुझपर डाली थी. आगे का कार्य मुझे करना था. "युके" के जिवन मे "खुशीयाँ" आने के पवित्र उद्देश को लेकर, मैने  "युके" को एक बार "लडकी" देखने मे क्या हर्ज है ? इस तरह "युके"  को तैयार कर लिया. "युके" के बडे भाई का साथी, मै और युके ऐसे चार लोग लडकी देखने गये. उस समय लडकी दिखाने के समय, बहूत जादा सवाल नहीं पुँछे जाते थे. "युके" के बडे भाई साहब ने लडकी को, एक दो जुजबी सवाल पुछे और आगे की बोलचाल करने की तैयारी दर्शायी. मैने जब "युके" को लडकी के बारेमे पुछा तो, युके ने भी सहमती दर्शायी. लडकी घटस्फ़ोटीत थी. बिना बाल बच्चे वाली थी. इस कारण हम तिनो का शादी के संबंध मे एक मत हुआ, उस दिन रिस्ता फिक्स हो गया. एक महिने के अंदर ही "युके" की शादी हो गयी. अब  "युके" के "हाथ पिले"  हो गये. युके की "दुल्हन" घर आने पर अगले कुछ दिन तक, मैने उनके घर जाना कम कर दिया. युके और उनके घरवाली का संसार शुरू हो गया था.
             एक महिने बाद, एक दिन शामके वक्त "युके" और मै, दोनो ही गाँव के बाहर घुमने गये थे. "युके"ने ही उनके घरवाली के संबंध मे कुछ महत्त्वपूर्ण बाते मुझे बतायी. उनके अनुसार उनकी घरवाली "मानसिक बिमार" थी. "युके" के भाई साहब को जब यह बात बतायी गयी तो उन्होने सामने वाले लोगोंसे बात करने के लिये संबंध मे मध्यस्थ व्यक्ती को घर बुलाकर सब बात विस्तार से बतायी. मध्यस्थ व्यक्तीने बौखलाकर हाथ उपर कर दिये और वहाँ से निकल गया. फिर "युके" और मैने खुद "युके" के ससुरजी के घर जाकर लडकी को, घर वापसी लेकर जाने के बारेमे संदेशा दिया. ससुरजी ने लडकी वापसी की "हामी" भरने पर, हम दोनो मित्र घर लौट आये थे.      
  ( क्रमशः)
To be continued........
धन्यवाद.
                                                                                                                              श्री रामनारायणसिंह खनवे.
                                                                                                                                   परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर,  कल हम फिर मिलेंगे.)

             
 

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