मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 102 (one Hundred Two) :- नियती के फेरेमे फसे मेरे मित्र "युके" और लियी एगझिट.... (1982-83 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) ( Part One) प्यारे पाठको, पिछले भाग मे हमने देखा की, मेरे प्रिय मित्र "युके" की घरवाली ने बेटे को जन्म दिया. मायके वालोने उसे बच्चे के साथ "युके" के घर दस पंधरा दिनो मे ही वापसी भेज दिया था. "युके" के घर वह, बडी बेफिकिरी के साथ रह रही थी. जैसे उसकी डिलिवरी हुयी ही नही. बेटे की तरफ बडी मुश्किल से ध्यान देती थी. और अब आगे.... "युके" ने भी उसे, बचके रहने के लिये लाख समझाया. मोहल्ले की महिलाओ ने भी उसे अगली कठिनाईयाँ समझायी. फिरभी वह, वही काम करते रही. आखिर "युके" ने भी उसे इस बारेमे, बोलना छोड दिया. आठ दस दिनो के बाद, एक दिन अचानक ही "युके" ने मुझे उनके पत्नी की तबियत बिघडने के बारेमे बताया. मैने उन्हे तुरंत ही पत्नी को दवाखाने लेकर जाने को कहा. "युके" ने भी देर न करते हुये, पत्नी को शहर के अस्पताल मे बताया. वहाँ "युके" की पत्नी को "निमोनिया" बताते हुये भरती कर लिया गया. दो पहर मे गाँव आकर "युके" ने मुझे पोस्ट की चाबी और टेम्पररी चार्ज थमा दिया और वे फिर से पत्नी के पास अस्पताल निकल गये. अब उनका चार्ज मुझे संभालना था. "युके" की दोस्ती के खातिर मै किसी भी त्याग के लिये तैयार था. इस तरह पाँच छह दिन बिते होंगे. सातवे दिन "युके" की पत्नी स्वर्ग को सिधार गयी. "युके" और उनके परिजनो ने पत्नी का अंतीम संस्कार मायके के गाँव मे ही कराया. बादमे सब लोग, बच्चे को लेकर अपने गाँव लौट आये.
अगले सामाजिक क्रिया कर्म गाँव मे "युके" के घर से ही किये गये. अब रहा सवाल "युके" के बेटे को संभालने का. क्योंकी "युके" बच्चे को संभाल नही सकते थे. मायके वालो ने भी हात उपर कर दिये थे. आखिर "युके" के छोटे भाई, बच्चे को संभालने तैयार हुये. "युके" और परिवार वाले भी, बच्चे के लिये मान गये. दुसरे दिन बच्चे को लेकर छोटे भाई, उनके गाँव चले गये. अब रहे अकेले "युके". नियती ने उनके साथ अजब ही, खेल खेला था. घरवाली आयी और चल बसी. बेटे को भी पास नही रख सके. आखिर "युके" को जिंदगी, खाली खाली, बोझ सी लगने लगी थी. "युके" की, मन की स्थिती को मै जानता था. पिछले तिन चार महिनो मे मैने देखा "युके" सिर्फ शरीर से मेरे साथ रहने लगे थे. उनका दिमाग कहीं और भटकते रहता था. "युके" की इस स्थिती के लिये हम भी कुछ जिम्मेदार थे. ना हम लडकी देखने को "युके" से कहते, और ना, अगला इतिहास घडता.
अब फिरसे "युके" अकेले पड गये थे. सुबह का मेरा राउंड, उनके घरकी तरफ से ही होता था. फिर दो पहर मे चार के दरम्यान, मै "युके" के घर पहूँचता था. तब हम ठहराते थे की, हमे क्या करना है ? कही नही जाना हो तो, हम गाँव के बाहर "घुमने" निकल जाते थे. घुमते वक्त "युके" कुछ दिनोमे "छाती मे दुखने" की बात मुझसे कर रहे थे. "यंग एज" का होनेसे मै उनके बिमारी को सिरियसली समझा नही था. मैने "युके" को अस्पताल जानेका सुझाव दिया और साथमे स्मोकिंग छोडने के लिये भी कहा. "युके" ने दोनो बाते मानी. शहर के अस्पताल मे तबियत भी दिखायी और दवाये भी लेनी शुरू कर दियी. उनका साथ मेरा रूटीन कार्य था. "युके" को अब कुछ आराम पडने लगा था. मै हर दिन उनसे तबियत की खैरियत पुँछते रहता.
इसके बाद, पाच छह दिनो मे, "युके" को रातमे कुछ "अस्वस्थ" सा लगने लगा. साथमे घबराहट और बेचैनी भी हो रही थी. उन्होने किसी तरह रात गुजारी और सुबह जब पोस्ट मॅन उनके घर आया, तो उसे अपनी स्थिती "युके" ने बतायी. और जल्दी से ही अस्पताल ले चलने को कहा. डाकिये ने डाॅ. "डी" के दवाखाने मे "युके" को ले आया. डाॅ. "डी" ने उन्हे चेक करके, इंजेक्शन लगाया और पेशंट को घर ले जाने के लिये कहा. यह घटना सुबह नऊ दस के दरम्यान हुयी थी. मै इस घटना से अनभिज्ञ था.
उसी दिन, सुबह ग्यारह के दरम्यान मै सोसायटी मे मिटिंग कर रहा था. अचानक बाहर मुझे पोस्ट मॅन दिखा. उसने इशारे से ही मुझे बाहर बुलाया. मुझे कुछ शंका हुयी और मै बाहर आया. डाकिया संदेशा बताने से डर रहा था. मैने उसे धिरज दिया और पुछा की, डरो मत, बताओ क्या हुआ ? (क्रमशः)
To be continued.......
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे.
परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर, कल हम फिर मिलेंगे.)
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