मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 82 ( Eighty Two) :- मेरे घर और परिवार को कैसे दिया मैने नया मोड ? (1975/76 के दरम्यान घटी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) (Part Two) प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा की, मेरी "पी" बहन की दुसरी शादी करने का "निर्णय" परिवार के लगभग सभी सदस्यो को मान्य था. मेरे जिगरी दोस्त "युके" और "पीपी" मामा ने तो इस संबंध के लिये पहले से ही मुझे उनके समर्थन के बारेमे अपनी अपनी राय दे रखी थी. फिर इसके बाद आगे क्या हुआ यह हम, मेरी यादोंके माध्यम से अब आगे देखेंगे. मेरी "पी"बहन की पहली शादी पास वाले गाँव के ही सधन परिवार मे हुयी थी. वहाँ उसे एक "कन्या" की प्राप्ती हुयी लेकिन "बदनसिबी" का फेरा उसके आड आया. कुछ न समझते हुये, अनहोनी की गर्त मे, उसे "वैधव्य" को स्विकारने पडा. तबसे "पी" दिदी अपने बेटी के साथ हमारे परिवार मे ही रही थी. अब उनकी लडकी पाँच छह साल की होने से थोडी समझदारी मे आ गयी थी. हम परिवार वालोने उसके भविष्य मे आनेवाली परिस्थिती को ध्यानमे रखते हुये, "पी" दीदी की "दुसरी शादी" करने के बारेमे निर्णय ले लिया था. और वह "पी" दीदी को भी वह मान्य था.
हम दोनो मित्रो से (हवा खाते वक्त) हर दिन जिन "मास्टर जी" से मुलाखात मे बाते होती थी, उन्ही से "पी" दीदी का रिस्ता होने वाला था. हम लोगोने मध्यस्थ के माध्यम से "झेड" मास्टर जी के घर "रिस्ते" का संदेशा पहूँचा दिया. अब उधर से क्या रिस्पाॅन्स मिलता इसकी हम लोग राह देख रहे थे. दो तिन दिन मे ही "झेड"मास्टर जी के तरफ से हमे संदेशा मिला और सुचित किया था की, "हमारे दो मेहमान आकर आप लोगोंसे बात करेंगे". छुट्टी के दिन हम लोगोने बैठक का आयोजन रखा था. गाँवके तिन चार बुजुर्ग प्रतिष्ठित मान्यवरो को मैने निमंत्रण दे रखा था वे भी उपस्थित हो गये थे. मेरा मित्र "युके" और "पीपी" मामा पहले से ही आ गये थे. उन्हे हमारी और से पुरे अधिकार हम लोगो ने दे दिये थे. बाकी बुजुर्ग मान्यवर उनके "हाँ मे हाँ" मिलाने वाले ही थे. उधर से आये मेहमानो ने "दुल्हे लडके" के बारे मे हर बात को "स्पष्ट" कर दिया था और "पी" दीदी की लडकी उसके साथ नही ले आनेकी भी बात कही. जिसे हमने मान्य कर लिया था. अब हमारी बारी थी. हम ने "पी" दीदी के नाम से "दो एकड" खेती लिखा देने की बात कही, जिसे उन लोगोने भी मान्य कर लिया था. हमने खेती की बात इसलिये कियी थी की, उन दिनो "दुसरी शादी" करते वक्त, समाज मे खेती, मकान या फिर नगद रकम "दुल्हा पक्ष" "दुल्हन" को "जनम भर निभा" लेने की "ग्यारंटी" के तौरपर देते थे. हमे इसमे की कोई भी चिज नहीं होनी थी. सिर्फ "मान्यवरो" के सामने उन लोगोसे जमिन के बारेमे "शब्द" चाहिये थे. "जमिन जुमले" के बारे मे हम कम नही थे. वैसे "झेड" मास्टर जी "नोकरी वाले" होनेसे ऐसी कोई स्थिती पैदा होने की गुंजाइस बहूत ही कम थी. सो उस दिनके बैठक मे "पुनर्विवाह" की तारीख ठहरा कर दोनो मेहमान भोजन के बाद वापिस चले गये.
उस जमाने मे पुनर्विवाह कार्यक्रम के बारेमे समाज मे कुछ अजब रिवाज पुर्वापार से चलते आये थे. पुनर्विवाह के लिये "दुल्हा" और उसके चार पाँच मेहमान आते थे. शादी मे गाँव के या बाहर के रिस्तेदारो की उपस्थिती भी नगण्य रहती है. सिर्फ परिवार के लोगोंकी उपस्थिती मात्र से पुनर्विवाह संपंन्न होता था. वैसा ही सब कुछ "पी" दीदी के पुनर्विवाह के प्रसंग मे भी हुआ था. रात मे ही "दुल्हा" और उनके साथ आये मेहमानो को खाना खिलाकर ग्यारह बजे रात "दुल्हन" को, उनके साथ हम लोगोने बिदा कर दिया. "पी" दीदी की लडकी को हमने समझा बुझाकर हमारे साथ ही रख लिया. वह भी सब बाते समझते हुये, हमारे साथ घुल मिल गयी. परिवार ने भी उसे दुसरा कभी नही माना. इस तरह की, पाॅझिटिवली "सोच" को अमल मे लानेसे मेरे परिवार मे खुशीयों का माहौल फिरसे बनता नजर आने लगा था. जो मै चाहता था.
To be continued.......
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे
परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल, हम फिर मिलेंगे.)
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