मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 76 ( Seventy Six) :-
भयंकर विपदाने मेरे परिवार को फिर घेरा..... (1974 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित घटनाये) ( Part Two)
प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा की, अक्षय तृतीया का दिन था. पितरो की पुजा मे मै बडे पिताजी को लाने उनके पास जब पहूँचा तो वे हमे छोड कर स्वर्गवासी हो गये थे. इसके बाद की घटनाये मेरी यादों के माध्यम से अब हम देखेंगे.
बडे पिताजी के अचानक हुये दुःखद निधन से हम सबको बहूतही धक्का लगा. घरमे कोहरामसा मच गया था. मोहल्ले मे खबर पहूँचते ही नजदिकी रिस्तेदार आकर हमे सांत्वना देकर चुप करा रहे थे. अक्षय तृतीया के त्योहार के निमित्त बनाया हुआ भोजन जैसा की वैसा धरा पडा था. भोजन करनेकी किसीकी भी इच्छा नही हो रही थी. हमारे परिवार मे यह तिसरी दुःखद घटना थी जिसे सहनेकी ताकद अब किसीमे भी नही बची थी. उसी दिन सुबह सबेरे बडे भाई साहब के बेटे के पेट मे दर्द होने पर उसे पासवाले गाँव के प्रायमरी हेल्थ सेंटर भेजा था. उसकी बिमारी की अवस्था "बिकट" थी और बडे पिताजी के अचानक दुःखद निधन से हमारा परिवार सकतेमे आ गया था.
बडे पिताजी के इस अचानक हुये दु:खद निधन से हम सब लोग अधमरे हो गये थे. सुबह सात बजे हे बडे भाई साहब के बेटे की कोई खबर हमे मिली नहीं थी. इस कारण अब बच्चे की भी चिंता परिवार को सता रही थी. हम सब इश्वरसे मनही मन प्रार्थना कर रहे थे की, बच्चा भला च॔गा होकर घर वापिस लौटे. लेकिन हमारे परिवार को विपदाने इतना घेर लिया था की, हम "सोना" भी हातमे लेते तो वह "कंकड" होकर ही वापिस आता था. आखिर दोपहर चार बजे दवाखाने गया हुआ "छकळा" घर आया. बच्चा "भगवान को प्यारा" हो गया था. उसे देखकर वहां उपस्थित हमारे सब रिस्तेदार रोये बगैर नहीं रहे. सब भगवान् से बच्चे का दोष पुछ रहे थे. जब "घर घरानो" पर विपदा पडती है तो "तहस नहस" होनेमे बहूत देर नही लगती. जैसा आते है उसी तरह चले जानेमे भी देर नहीं लगती. "बिक्रम राजा पर बिपदा पडी, भुंजी मछली डोहमे पडी" वाला किस्सा मेरे परिवार को लागू पड रहा था.
हमारे परिवार मे हुयी इस घटना को जो भी सुनता, उसे इस "होनी अनहोनी" पर विश्वास ही नही हुआ था. परंतु हमारे घर आकर उन लोगोने जब देखा, तो "घटना की सच्चाई" उनकी समझमे आयी. शाम होते होते, इन दोनो प्रसंगो की खबर आसपास के पांचो गाँवोमे "हवा के झोके" से पहूँच गयी. जो भी सुनता, हमे मिलने जरूर आया. हम परिवार के लोग, हुयी घटना के मारसे "बेहाल" हो गये थे. फिरभी सामाजिक रिती रिवाजो का पालन हमे करना पडा. "बडे पिताजी ओर उनका नाती" दोनो खामोश अवस्था मे सोये हुये थे. उनकी अवस्था देखते हुये हम सब लोग क्या स्थितीमे होंगे इसकी कल्पना करना भी कठीण था. सबेरे बनाया हुआ भोजन किसी ने भी नही खाया. "अक्षय तृतीया" का दिन हमारे परिवार के लिये भयंकर "विपदा" का दिन निकला था. जिस दिन हमारे दो प्रियजन हमे छोडकर चले गये थे.
उस दिनकी वह रात रिस्तेदारो के साथ बडे भारी मनसे हमने निकाली थी. रातभर कोई सो नही सका. दुसरे दिन सुबह ग्यारह बजे हमारे साथही बहूत बडे "जनसमुदाय" ने "दादा नाती" को अंतीम बिदाई दियी थी. अकस्मात् आये इन प्रसंगो को हम कभीभी भुला नही सकेंगे. मेरे परिवार के लिये यह चौथी दुःखद घडी थी. परिवार के "दो बुजुर्गो" के छोड जानेसे हमारा पारिवारीक वजन "हवा" से भी "हलका" महसूस होने लगा था. दो नये बच्चों का बिछड जाना भी परिवार की बहूत बडी हानी थी. इस "होनी अनहोनी" के "चक्रव्यूह" ने हमारे परिवार को एक "अंधेरी खाई" मे धकेल दिया था. जिसे पार करने के लिये मुझे भविष्य मे बहूतसे उलटे सिधे निर्णय भी लेने पडे.
To be continued.......
धन्यवाद.👃👃👃
श्री रामनारायणसिंह खनवे
परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)
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