"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 80 (Eighty) :- मेरा परिवार मेरा गाँव, बस यही मेरी जिंदगी का मकसद ( 1975-76 के दरम्यान घटी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) (Part One)

मेरी यादें  (Meri Yaden) : भाग 80 (Eighty) :- मेरा परिवार मेरा गाँव, बस यही मेरी जिंदगी का मकसद ( 1975-76 के दरम्यान घटी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) (Part One)            
                   प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा की, मै नोकरी के गाँव से "बिदाई" लेकर गाँव वापिस आ गया था. गाँव मे मेरे परमनंट आने के समाचार से, कहीं कहीं खलबली सी मच गयी. मेरे परिवार के सदस्यो को खुशी हुयी थी. और अब  हम देखेंगे, मेरी यादों के माध्यम से बडी ही रोचक घटनाये. 
           नोकरी के बंधनो से अब मुझे मुक्ती मिल गयी थी. मेरे माईंड के तनाव का प्रेशर भी कुछ कम हो रहा था. परिवार मे माँ, बहन, भाई के साथ रहने मिलना, मेरे लिये स्वर्ग की तुलनामे कम नहीं था. कुछ लोगोंके लिये "पैसा" ही सब कुछ हो सकता है, लेकीन मै इन विचारो से थोडा दूर ही रहा हूँ. जिवन चलाने के लिये पैसा आवश्यक है. लेकिन "पैसा" ही सब कुछ  नही हो सकता. बहुतांश लोग पैसा कमाने के चक्कर मे इतने फँस जाते है की, वहां से निकलना उनके लिये "ना मुमकिन" सा हो जाता है. पारंपारिक रिस्ते नाते संबंधो के महत्व पर परदा पड जाता है. मै जब इन बातो पर गौर करता हूँ तो, मेरा निष्कर्ष यही निकलता है की, "भाग्य" से मिले इस अनमोल जिवन का अर्थ ही हमारी समझमे नही आता. हमे मिली हुयी हर सांस किमती है. हर क्षण की किंमत अनमोल है. जिवन मे आये उस क्षण को, ना समझी मे ऐसे ही गवांने पर गिनती मे, उम्र के सालो की संख्या तो बढना ही है. उम्र कभी घटती नहीं. उसे तो बढना ही है. "आला क्षण, गेला क्षण, घड्याळ करते टिक् टिक् टिक्." घडी कभी बंद नहीं रहती. उसका "चलना" ही उसका जिवन है. बिता हुआ क्षण फिर कभी नहीं आता. "जानेवाले ..... कभी नहीं आते, जाने ... वालो की याद ..आ..ती है."  इन सब बातो ने, मेरे चिंतन को नयी दिशा मे मोड दिया. 
              घर परिवार मे आनेपर मैने देखा की, बडे भाई साहब नौकरो के भरौसे पर खेती बाडी का काम चला रहे है. शाम मे सालदारो से "पुछताछ" करने पर अगले दिन का कामकाज चला लेते थे. ऐसा करने से खेती मे मजदूर डबलमे लग रहे थे. बाहरसे लिये गये कर्ज भी, दिनो दिन बढ ही रहे थे. मेरे बचपन के एक मित्र गाँव मे ही थे. वे मेरे बडे भाई साहब के भी काॅमन मित्र थे. हम दोनो भाईयो से वे उम्र मे दस साल बडे थे. उस मित्र के साथ चर्चा करके हम दोनोने, इसके पहले कई बिकट प्रसंगो मे हल निकाले थे. मित्र की सलाह पर ही मैने बडे भाई साहब को उनके "हिस्से" की खेती का हिस्सा देकर अलग हिसाब कर दिया था. बाकी बची जमिन की देखभाली अब मेरे हात आ गयी थी. अब तक मैने पढाई लिखाई और नोकरी करने मे ही जिवन का जादा तर समय दिया था. अब नोकरी से तो मै फ्री हो गया था लेकिन इतनी बडी पचास एकड जमिन को जोतना करना, साथमे ख॔डीभर गाये भैसो की देखभाली भी करना था. दो तीन सालदारो को भी चलाना था. मजदुरो के लिये सप्ताह के दिन पेमेंट की व्यवस्था करना मेरे लिये बडा ही  जानलेवा कार्य था. मजदूरो का पेमेंट रोकना तो मेरे डिक्शनरी मे शब्द ही नही था. बडे भाई साहब ने अपना "जमिन जुमला" स॔भाल लिया था. हम दोनो भाई बचपन से साथ खेले बडे हुये थे. साथ साथ पढे भी थे. दोनो का मित्र भी एक ही था. हम दोनो उस मित्र की सलाह लेना नहीं भुलते. लेकिन हम दोनो भाईयो के विचारोमे अब उत्तर दक्षिण ध्रुवो जैसा अंतर आ गया था. उनके साथी मुझे पसंद नहीं करते थे. 
             मै मेरा मार्ग छोड नहीं  सकता था. इस कारण मेरे विचारो को समर्थन देने वाले मेरे  बचपन के सच्चे जिगरी मित्र "युके " की साथ लेना ही मैने उचित समझा. मेरा यह मित्र बगैर शादी वाला, सुबह सिर्फ तीन घंटे की पार्ट टाईम ड्युटी करने पर "दिन रात" के लिये फ्री रहने वाला था. मेरा साथ देने के लिये वह भी पूरी तरह तैयार बैठा रहता था. वह "बंबई" रिटर्न होने से "गाँव वाले" किसी से भी झेप नहीं खाता था.   (क्रमशा)
To be continued. .....
धन्यवाद. 
                                                                                                                                  श्री रामनारायणसिंह खनवे
                                                                                                                                       परसापूर.(महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)

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