"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 107 (एक सौ सात) :- छोटे दो भाईयों की शादी मैने कैसे निपटाई ? : (1985 के दरम्यान घटी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) :- (Part One)

              मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 107 (एक सौ सात) :- छोटे दो भाईयों की शादी मैने कैसे निपटाई ? : (1985 के दरम्यान घटी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) :-    (Part One)
                         प्यारे पाठको, पिछले भाग मे हम ने देखा की, मेरे बच्चे अब बडे हो गये है. उनको पढा लिखाकर अच्छा नागरिक बनाने के लिये मुझे उन्हे लेकर शहर जाना आवश्यक हो गया था. गाँव मे "युके" के जाने के बाद मेरे विश्वासू मित्रो मे कमी आ गयी थी.  खेती से हुआ नुकसान लगातार बढते ही जा रहा था. इन सब कारणो से अब मेरा मन वहाँ से उचटसा गया था.                                  
                लेकिन इसके पहले, दो साल पुर्व घटी, कुछ रोचक घटनाये, हमे फिरसे याद आने लगी है. जिन्हे हम भुलसे गये थे. वे रोचक सी यादें अब नजरोमे आने लगी है. उन्हे छोडकर आगे बढना हमारे लिये ठिक नहीं  होगा. सो अब आपके सामने हम पेश कर रहे है...... " मेरे दो छोटे भाईयों की शादी मैने कैसे निपटाई "? आशा करता हूँ की, आप को उन रोचक घटनाओ को पढनेमे आनंद भी मिलेगा और ज्ञान वर्धन भी होगा.
              हम कुल मिलाकर पाँच भाई थे. बडे भाई साहब हम से अलग रहने लगे थे. उनके हिस्से की खेती बाडी भी हम लोगोने उन्हे सौप दियी थी. अब बचे हम चार भाई. जिसमे मेरी शादी होने को, पंधरा साल बित गये थे. मेरे बच्चे भी अब बडे होने लगे थे. मेरे से छोटा भाई दस साल पहले मिलिट्रीमे चला गया था. उसकी शादी गाँव के ही परिवार की लडकीसे हुयी थी. उसे भी पाँच सात साल हो गये थे. मेरे से छोटे दो भाई, शादी की उम्र के हो गये थे. उन दिनो भी लडकी वालो की चाॅईस "नोकरी वाले लडको" की ही थी. इस कारण मेरे दोनो भाई लेट होने लगे थे. क्योंकी वे दोनो भी नोकरी मे नही थे. यह बात मै अच्छी तरह से समझ रहा था. लेकिन कुछ अनुकूल करना मेरे भी हात मे नहीं था. पुर्वापार से इस बारेमे, गाँवो मे एक सोच चलते आयी है. बडे बुजुर्ग कहते  है की, "नशीब मे जिस जोडे का नाम लिखा होगा, वह अचानक सामने आये बगैर नही रहेगा. फिर उसके लिये पिछेवाले लोगो की कितनी भी नाराजी हो, संबंध हो कर ही रहेगा." 
             छोटे भाईयों की शादी लेट होनेसे हमारे नजदिकी  रिस्तेदार लोग भी चिंतित हो गये थे. इसी दौरान मेरी एक ममेरी "डी" बहन मुझे मिलने आयी. बात बात मे उसने, मेरे दोनो छोटे भाई की शादी करा देने की बात कही. और  "रूपये पैसे ना हो तो, उनके हिस्से की जमिन बेचो, फिरभी उनकी शादी करो." ऐसा उन्होने मुझसे कहा. यह भी सच था की, मेरे सब भाईयों के बारेमे उन्हे भी चिंता थी. यह सब बाते मै समझ रहा था. सवाल हिस्सेकी जमिन बेचने का नहीं था. सवाल था, लडकी वालोकी सहमती का, लडकी देने के लिये हाँ कहने का और शादी कराने के लिये जमिन को बेचना,  इसे तो मै "मुर्खता की हद" ही समझता हूँ. ऐसा करके "हमारे ही पाँवो पर हम ही कुल्हाडी मारने" जैसी बात हो सकती है. उस समय मैने "डी" बहन का हौसला बढाते हुये, लडकी ढुंडने के लिये आश्वासित किया. "डी" बहन की चिंता जतानेसे मै भी थोडा दोनो भाई यो की शादी के विषयमे चिंतित सा था. क्योंकी परिवार का कर्ता धर्ता पुरूष मै था. प्रयत्नो की पराकाष्टा करो, या और कुछ भी करो, लेकिन दोनो छोटे भाईयों की शादी कराके ही छोडना, यही मेरे लिये फर्स्ट प्रिफरन्स वाला कार्य उस वक्त हो गया था.  (क्रमशः)
To be continued.........
धन्यवाद. 
                                                                                                                                    श्री रामनारायणसिंह खनवे.
                                                                                                                                          परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, इसके आगे की घटनाओ के लिये, कृपया कल का भाग देखे.)

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