मेरी यादें (Meri Yaden) : भाग 104 (एक सौ चार) : नियती के फेरे मे फसे मेरे मित्र "युके" ने लियी एगझिट और कह गये "अलबिदा दोस्त" : (1982-83 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित मेरी यादें) ( Part Two) प्यारे पाठको, पिछले भाग मे हम ने देखा की, उस दिन, मै सोसायटी के ऑफिस मे मिटींग कर रहा था. तभी उसी समय, पोस्ट मॅन बाहर रूकते हुये मेरे ही तरफ देख रहा था. वह मुझे इशारे से ही बाहर बुला रहा था. मुझे कुछ अनहोनी बातकी आशंका हुयी और मै त्वरित उठकर उसके पास पहूँच गया था. और अब हम देखेंगे, आगे की घटनाओ के बारेमे...... मै जब पोस्ट मॅन "एच" के पास बाहर पहूँचा और क्या बात हुयी ?, यह जब उससे पुछा तो, वह कुछ बताने की हिंमत नही जुटा पा रहा था. उसके इस तरह के अबोलेपन से मुझे और भी घबराहट होने लगी. मैने पोस्ट मॅन "एच" की हिंमत को बढाते हुये, उसे घटना के बारेमे जल्दी से बताने को कहा, तब कहीं उसने रूक कर धिरे से मुझे बताया की, "मास्तर गेले" (पोस्ट मास्टर स्वर्ग सिधार गये) इतना कहते हुये उसने जोरसे रोना शुरू कर दिया. यह सुनते ही मुझे भी जोर का धक्का लगा. दिल भी जोरसे धडकने लगा. मै भी मेरे आसूं रोक नही सका. हम दोनो की यह अवस्था देखकर बाकी लोग भी हमारे पास दौडकर आये और घटना के बारेमे पुछने लगे. उन सब को मेरी और पोस्ट मॅन "एच" की "युके" के साथ कैसी घनिष्ठता थी. यह सब लोग जानते थे. तत्परता से, हम सब लोग उसी समय "युके" के घर पहूँच गये. "युके" के बडे भाई "व्ही" और उनके परिवार वाले आस पास ही रहते थे. घटना के बारेमे सुनते ही वे सब "युके" के घर आ गये थे. उन्हे भी कल्पना नही थी की, पिछले साल ही तो शादी हुयी और अब हम सब को छोड चले गये. उनको तो घटना के बारेमे कुछ संशय भी हो रहा था. लेकीन मेरे और पोस्ट मॅन से रियल बातो को सुनने पर वे लोग भी समझ गये. अब "युके" के परिजनो को आगे के क्रियाकर्म की तैयारी भी करनी थी. वे सब उस कार्य मे जुट गये.
गाँव मे "युके" के दुःखद निधन का समाचार जिसने भी सुना, वह उन्हे अंतीम बिदाई देने जरूर आया था. मेरे और "युके" के संबंध "जग जाहिर" थे. "युके" को बिदाई देने जो भी आया, वह मुझे मिले बगैर नही रहा. उनकी समझ से "युके" और मै एक ही परिवार जैसे थे. उन सबकी वैसी समझ बनी हुयी थी. घर के, बाहर के, किसी भी प्रसंग मे "युके" ने मेरा साथ कभी नही छोडा. मेरे साथ "युके" के रहने पर, हम दो नही "ग्यारह" बन जाते थे. हम दोनो के साथ गाँव मे किसीने भी कभी पंगा लेने की हिंमत नही कियी. मेरा पाॅलिटीकल ग्राफ बढाने मे "युके" का बहूत ही योगदान था. मार्केटिंग प्रतिष्ठा बढाने मे "युके" का हात कोई नही पकड सकता था. हर दिन, हर "बुरे भले" क्षण मे "युके" मेरे साथ, "मेरा साया" बनकर रहे. मेरे घर के शादीयो मे, दुःखद घडी मे, खेती मे मजदूरो के पिछे, रातमे जागली पर, टुरिंग टाॅकिज के काँट्रॅक्ट मे, इतना ही नही मेहमानो के साथ "मै" बनकर रहना कोई छोटी बात नही है. अपने जिवन का अमुल्य समय मेरे लिये "युके" ने देना, यह "युके" के साथ मेरी पिछले जन्म की कोई रिस्तेदारी ही हो सकती है. वर्ना क्या कोई व्यक्ती उसका अपना जिवन और निजी स्वार्थ छोडकर दुसरो के लिये समय देने की बात सोच सकता है ?.
शाम पाँच बजे, "युके" के परिजनो के आनेपर, "युके" को बडे दुःखी मन से अंतीम बिदाई देनी पडी. "युके" का हम सब को इस तरह छोड कर जाना, दिलमे चोट पहूँचा कर गया. मेरे जिवन मे "युके" के जाने के बाद एक अलग तरह का "सुनापन" आ सा गया. "युके" के साथ रहकर जिने की आदत मुझे हो गयी थी. अब बिन "युके" के, दिन सुने-सुने से लगने लगे थे. "युके" की जगह कोई नही ले सकता. "युके" ने मुझे जिवन जिना सिखाया. जिनेकी नई राह बताई. "युके" मेरे प्रिय मित्र, सखा, भाई, गुरू सब कुछ बनकर मेरे साथ रहे. जिंदगी में मुझे मिला उनका साथ, मै कभी भुला नही सकता. अब सिर्फ बची है उनकी यादें. जब भी मुझे "युके" की याद आती है, आँखोमे ऑंसू आये बगैर नही रहते. "युके", तुम्हारी जगह कोई नही ले सकता. "युके" तुम मेरी "आत्मा" थे. मेरी "आत्मा" मुझे छोड कर चली गयी.
जाने....वाले... कभी.... नही आते, जाने वालों ..की याद आती.. है. अलबिदा "युके", मेरे प्यारे दोस्त, सखा, अलबिदा.(क्रमशः)
To be continued......
धन्यवाद. श्री रामनारायणसिंह खनवे
परसापूर. (महाराष्ट्र)
(प्यारे पाठको, कल एक विशेष घटना को लेकर, हम फिर मिलेंगे.)
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