मेरी यादें (Meri Yaden) :
भाग 73 (तिरहत्तर) :-
मुझे मिला, टुरिंग टाॅकिज के काँट्रॅक्ट का अनुभव : (1973-74 के दरम्यान घटी हुयी सत्य घटनाओ पर आधारित घटनाये) (Part One)
प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा की, उन दिनो, मेरी बेटी दो सालकी हो गयी थी. मुझे रामटेक तिर्थ को जानेका जब मौका मिला, तब वहां मेरी बेटी को सिढियोसे सबसे आगे दौडते देखकर मुझे बहूतही खुशी हुयी. मेरी बेटी के प्रति के मेरे इस रवैये पर, मुझे बहूतही पछतावा हुआ. तबसे ही मैने मेरे स्वभाव मे बदलाव लानेका निश्चित कर लिया था और तबसे ही मै, मेरी प्यारी बेटी की जिम्मेदारी को संभालने लगा था. अब आगे की घटनाओ के बारेमे मेरी यादो के माध्यम से हम देखेंगे.
पिछले दो सालोमे, मेरे घर परिवार मे घटी घटनाओने, मुझे मानसिक तौर से तहस नहस कर दिया था. फिरभी "समय बडा बलवान है." इन्ही दो सालोमे मै मानसिक तौर से थोडा स्थिर हो गया था. मेरी बेटी अब दो ढाई सालकी हो गयी थी. आगे दुसरी डिलीव्हरी के लिये, ससुरजी मेरी पत्नी को मायके नागपूर ले जानेके बाद, अब नोकरी के गाँव मे, मै और मेरा छोटा भाई दोनो ही रहे थे. छोटे भाई "सीजी" की हायर सेकंडरी ग्यारहवी की एग्झाम भी हो गयी थी. एग्झाम के बाद वह भी गाँव चला गया था. अब मै अकेला ही नोकरी के गाँव रह गया था. इस कारण मै भोजनालय मे जाकर खाना खा लेता था. मेरा जादातर समय खाली सा हो गया था. गाँव की खेती बाडी के व्यवहार बडे भाई ने संभालने के कारण वहाँ का कोई काम मेरे लिये बाकी नहीं था. उनके व्यवहार मे मै हस्तक्षेप नही करना चाहता था. खुदके परिवार के प्रति मेरे जिम्मेदारी, दिनो दिन बढ रही थी. नोकरी के वेतन से मै हर माह कुछ रकम बचा लेता था. मेरे खुद के खर्चे बहूतही कम थे. बचत कियी हुयी रकम को मै बढाना चाहता था. शुरू मे एक बार, बाहर की खेती को खोटसे करने पर, उसमे मैने नजदिक की पुंजी लगाकर बुरी तरह से चोट खायी थी. अब उसी काम को फिरसे दोहराने की हिंमत मै नही कर सकता था. मेरे पिताजी ने मेरे बचपन मे किये हुये टुरिंग टाॅकिज के काँट्रॅक्ट का व्यवसाय, मुझे बार बार अपनी ओर आकर्षित कर रहा था. बहूत सोच बिचार करने पर मैने टुरिंग टाॅकिज का काँट्रॅक्ट लेने के लिये मन बना लिया. मेरे एक दुरके रिस्तेदार के पासही उस टुरिंग टाॅकिज के व्यवहार थे. इस व्यवसाय मे हर दिन आने वाले नकद पैसो ने उसे "खाने पिने" वाले शौक के "आधिन" कर दिया था. उसके अनाडीपन का फायदा भी हर कोई उठा रहा था. इसी कारण उसका हर पिक्चर "घाटेमे" चलकर, उसपर कर्जे बढा रहा था. परिस्थितीवश, वह रिस्तेदार भी मेरी ही राह देख रहा था. उसने बडी खुशी से मुझे टुरिंग टाॅकिज चलाने का काँट्रॅक्ट दिया. उस समय मुझे बहुतही खुशी हुयी. पिताजी की जगह मैने ले लियी थी. क्योंकी पिताजी का अधुरा सपना, मै पुरा करने जा रहा था. मैने पैसा बढाने वाला एक अच्छा सोर्स, ढुंड लिया था. मेरे साथी टिचर लोगोने जब यह बात सुनी, तो उन्हे भी बडा आश्चर्य हुआ. लेकीन मै कुछ अलग ही धातूसे बना हुआ था. इसी कारण मेरे जिवनमे नयी नयी घटनाये प्रवेश कर रही थी. जिनका मै स्वागत ही करते रहता था. रिस्क लेने मे ही मुझे आनंद आता था.
मेरे पिक्चर काॅन्ट्रक्ट मे पहली फिल्म "परवाना" लगायी गयी थी. पिक्चर सात दिनोके लिये लगी थी. सस्पेंस भरी फिल्म होनेसे दर्शको को अच्छी पसंद आ रही थी. मुझे हर दिन कलेक्शन अच्छा मिल रहा था. इस बातसे कुछ स्थानिक लोग खुश नहीं थे. उन्होने ऑपरेटर को हातमे लेकर, पिक्चर प्रिंट को बार बार तुडवाकर दर्शको मे नाराजगी लानेके भरसक प्रयत्न किये. यह बात मेरे समझमे आ गयी थी. फिरभी मै बोल नही सका था. मै मेरी टेक्निक से व्यवसाय करनेकी सोच लेकर चल रहा था.
To be continued........
धन्यवाद. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏 रामनारायणसिंह खनवे.
परसापूर. (महाराष्ट्र) (प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)
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