मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 51 (एक्कावन) : मेरी शादी और सरकारी नोकरी दोनो एक साथ मिले. (सत्य घटनाओ पर आधारित - 1970 की घटनाये) (Part Two)
प्यारे पाठको, पिछले भाग मे हमने देखा की, मुझे सरकारी नोकरी की अपाॅइमेंट ऑर्डर मिल गयी है. साथ मे मुझे एक लडकी भी पसंद आ गयी. जिससे मेरी शादी होने वाली थी. इसके आगे की घटनाये, मेरी यादों के माध्यम से, हम अब आगे देखेंगे.
मेरे जिंदगी मे 1970 का साल यादगार बना है. क्योंकी इसी सालमे मुझे सरकारी नोकरी भी मिली और साथमे मेरी शादी भी एक अच्छी लडकी से बारा जुन को हुयी, जिसके साथ जिवन के पचास साल मैने आनंद से बिताये है. और इसके लिये मै ईश्वर को बारबार धन्यवाद भी देता रहता हूँ. क्योंकी जिवन को सूखी समाधानी बनाने के लिये दोनो पहियो को एक साथ चलना पडता है. अन्यथा, दोनोका जिवन तो चलता है, लेकिन उसमे समाधान और खुशीयाँ कहाँ मिलती है ? दोनो सदस्यो की आपसी खिचा तानी से अगली पिढी भी परेशान हो जाती है, साथमे उनके बच्चो की पर्सनालीटी मे कुछ कमियाँ भी रह जाती है. मेरा शुरू से ही इन बातो पर कटाक्ष रहा था की, हमारी आनेवाली पिढी को कैसे उपर उठाया जाये? परंतु अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुयी थी. सिर्फ शादी की बातचित ही चल रही थी. दिल्ली बहूतही दुर लग रही थी. मुझे नोकरी पर बीस जुन को ज्वाइन होना आवश्यक था. इस लिये मै जल्दी से शादी करना चाहता था. लडकी वालो की शादी की अभी कोई तैयारी नहीं थी. इस माहोल से वे लोग अंजान और बेखबर थे. हमने जब उन लोगो को हमारी मजबूरी बताई तब ही उन्होने कुछ स्पिड लियी. फिर तुरंत ही उन्होने मेरे शादी का संबंध फिक्स कराके, शादी की तारीख बारा जुन निकाली. बादमे वे लोग शादी की तैयारी करने के लिये गाँव (नागपूर) चले गये.
मेरे नयी नोकरी की खबर से एच. एम साहब भी चिंता मे पड गये थे. अब तक मैने ऑफिस और स्टाफ, दोनो को संभाले रखा था. मेरा पूरे स्टाफ और बाकी कर्मचारीयो पर अच्छेसे प्रभाव बन गया था, जिस कारण एच. एम साहब को प्रशासन चलाना सुलभ हो गया था. अब मेरे जाने के बाद समस्या तो खडी होनी ही थी. एच. एम साहब कुछ ऐसा ही महसूस कर रहे थे. उनके सामने नोकरी से रिजाइन करने की मेरी हिंमत ही नही हो रही थी. इस बिच मे मै नयी नोकरी के गाँव धारणी जाकर भी आया था. इस कार्य मे मेरे जिगरी मित्र की साथ मुझे हर समय मिल रही थी. आखिर मे मई महिना आधा निकलने के बाद मुझे पुराने नोकरी का इस्तिफा देना आवश्यक हो गया. मित्र के साथ मै एच. एम साहब से जाकर मिला. एच. एम साहब ने मेरे रेसिग्नेशन के लिये पहलेसे "ना" कह दिया था. मेरे मित्र ने मेरी नोकरी की असमर्थता बताने के बाद ही एच. एम साहब ने बडे भारी मनसे मुँह से हाँ निकाला था. और ये भी कहा था की, "मैरे सामने बहूत सारे कर्मचारी आये और गये. इसके (मेरे) जैसा होनहार और पर्टिकुलर आदमी "सौ मे एक" ही मिलता है. तुम खुश नशिब हो, जो तुम्हे ऐसा दोस्त मिला है." उनके मुँहसे यह वाक्य सुनकर मै भी भावनाशिल हो गया और मैने "धन्यवाद" कहकर उनके पैर छूये. एक माह का वेतन और रिजाइन लेटर देकर मैने पुराने नोकरी को प्रणाम किया. इस तरह अब मै दुसरे नोकरी पर जाने के लिये तैयार था. परंतु अभी मेरी शादी होनी बाकी थी. उसकी भी तैयारी मुझे करनी थी. बरसात के दिन भी आने वाले थे. मेरी शादी बरसात के शुरूमे बारा जुन को होने वाली थी. बस् अब बारा जुन आने की राह देखना ही मेरे हाथमे था.
To be continued......
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे. परसापूर. (महाराष्ट्र)🙏🙏🙏
(प्यारे पाठको, एक विशेष घटना को लेकर कल हम फिर मिलेंगे.)
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