मेरी यादे - बहूत दिन हुये....
मेरा बचपन गाँव मे ही गया. बचपन मे धुपकाले के छुट्टीयो मे मै मेरे मामा के गाँव रहने के लिये जाता था. मामा का गाँव पास मे ही था. गाँव बडा होने से वहां की टुरिंग टाॅकिज मे मै सिनेमा देखने मामा के साथ जाते रहता था. "बहूत दिन हुये" नाम की फिल्म मैने वहां पर ही देखी थी. फिल्म के कथा के नुसार एक पराक्रमी राजा था. उसे मेरे ही उम्र का राजकुमार लडका भी था. राजा राजकुमार से बहूतही प्यार करता था. राजा पराक्रमी होनेसे उसके बहूत से दुष्मन भी बन गये थे. उन सबने मिलकर एक चाल रची. एक जादुगार को ढूंडकर लाये.
उसने जादू के प्रभाव से राजा को घोडे सहीत पथ्थर का बना डाला. राजा का अंत हो गया. राजा का घोडे पर बैठा हुआ पुतला देखकर राजकुमार फुट फुटकर रोया और बडा होनेपर बदला लेने की कसम खायी. मै कम उम्र का होने से उस प्रसंग ने मुझपर भी बहूतही गहरा असर किया. तब मेरी समझमे आया की इस जिवन का अंत भी होता है. जो जिवन का कटू सत्य है.
मेरे काॅलेज की पढाई के दौरान एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था. मै विद्यार्थी वो के साथ बैठकर भाषण सून रहा था. मराठी के लेक्चरर साहाब के भाषण का विषय था इन्सान मरना क्यौ चाहता है ? मुझे तो सब्जेक्ट सुनकर ही पसिना छुट गया था. भाषण कर्ता ने बताया की इन्सान के जिवन मे एक ऐसा समय भी आता है की उसे मरना ही सबसे सुंदर लगता है. यह विचार सूनकर मुझे बहूतही बूरा लगा. इस सुंदर जिवन को छोडकर मरना चाहने वाले लोग कितने मुर्ख होते होंगे, इस बातका व्दंद मेरे दिमाख मे चलना शुरू होते गया.
नियतीने हमारे सामने क्या क्या परोसकर रखा होगा इस बातको अभी तक कोई जान नही सका. मै जब बादमे सर्विसमे गया. मेरी शादी भी हो गयी थी. फीर भी लेक्चरर साहाब के भाषण के विचारोने मेरे दिमाख के चक्कर लगाना नही छोडा. मै जितना उन सबसे दूर भागना चाहता था उतना ही मै उसमे फसता गया.
मुझे कभी भगवान गौतम बुद्ध और भगवान महाविर इनके जिवन की घटी घटनाये भी याद आती थी. क्या इन्ही विचारो के कशमकश् ने ही उन्हे महान बनाया. उन दोनोने महान कठीन तपस्या करके जिवन को सुवर्ण तुल्य तो बनाया ही. सम्पुर्ण मानव जाती के लिये प्रकाशमान भी हुये. आज दोनो हमारे भगवान है और जब तक संसार है तब तक भगवान ही होंगे. उन दोनोके विचारोने मुझे नया जिवन जिने की राह दिखायी. जिसपर चलने का मै भरसक प्रयत्न कर रहा हूँ.
श्री. रामनारायणसिंह खनवे.
धन्यवाद. नमस्कार . 🙏🙏🙏
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