"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादे {part 1}- बहूत दिन हुये......

           मेरी यादे - बहूत दिन हुये....
            मेरा बचपन गाँव मे ही गया. बचपन मे धुपकाले के छुट्टीयो मे मै मेरे मामा के गाँव रहने के लिये जाता था. मामा का गाँव पास मे ही था. गाँव बडा होने से वहां की टुरिंग टाॅकिज मे मै सिनेमा देखने मामा के साथ जाते रहता था. "बहूत दिन हुये"  नाम की फिल्म मैने वहां पर ही देखी थी. फिल्म के कथा के नुसार एक पराक्रमी राजा था.  उसे मेरे ही उम्र का राजकुमार लडका भी था. राजा राजकुमार से बहूतही प्यार करता था. राजा पराक्रमी होनेसे उसके बहूत से दुष्मन भी बन गये थे. उन सबने मिलकर एक चाल रची. एक जादुगार को  ढूंडकर  लाये.
             उसने  जादू के प्रभाव से राजा को घोडे सहीत पथ्थर का बना डाला. राजा का अंत हो गया.  राजा का घोडे पर बैठा हुआ पुतला देखकर राजकुमार फुट फुटकर रोया और बडा होनेपर बदला लेने की कसम खायी. मै कम उम्र का होने से उस  प्रसंग ने मुझपर भी बहूतही गहरा असर किया. तब मेरी समझमे आया की इस जिवन का अंत भी होता है. जो जिवन का कटू सत्य है.
             मेरे काॅलेज की पढाई के दौरान एक कार्यक्रम  आयोजित हुआ था. मै विद्यार्थी वो के साथ बैठकर भाषण सून रहा था. मराठी के लेक्चरर साहाब के भाषण का विषय था इन्सान मरना क्यौ चाहता है ? मुझे तो सब्जेक्ट सुनकर ही पसिना छुट गया  था. भाषण कर्ता ने बताया की इन्सान के जिवन मे एक ऐसा समय भी आता है की उसे  मरना ही सबसे सुंदर लगता है. यह विचार सूनकर मुझे बहूतही बूरा लगा. इस सुंदर जिवन को छोडकर मरना चाहने वाले लोग कितने मुर्ख होते होंगे, इस बातका व्दंद मेरे दिमाख मे चलना शुरू होते गया.
          नियतीने  हमारे सामने क्या क्या परोसकर रखा होगा इस बातको अभी तक कोई जान नही सका. मै जब बादमे सर्विसमे गया. मेरी शादी भी हो गयी थी. फीर भी लेक्चरर साहाब के भाषण के विचारोने मेरे दिमाख के चक्कर लगाना नही छोडा. मै जितना उन सबसे दूर भागना चाहता था उतना ही मै उसमे फसता गया.
           मुझे कभी भगवान गौतम बुद्ध और भगवान महाविर इनके जिवन की घटी घटनाये भी याद आती थी. क्या इन्ही विचारो के कशमकश् ने ही उन्हे महान बनाया. उन दोनोने महान  कठीन तपस्या करके जिवन को सुवर्ण तुल्य तो बनाया ही. सम्पुर्ण मानव जाती  के लिये  प्रकाशमान भी  हुये. आज दोनो हमारे भगवान है और जब तक संसार है तब तक भगवान ही होंगे. उन दोनोके विचारोने मुझे नया जिवन जिने की राह दिखायी. जिसपर चलने का मै भरसक प्रयत्न कर रहा हूँ.

 श्री. रामनारायणसिंह खनवे. 
            
                            धन्यवाद.     नमस्कार .    🙏🙏🙏




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