मेरी एम. पी. वाली बडी माँ. ......
मेरी माँ के अतिरिक्त मुझे दो बडी माँ ये भी थी. सबसे बडे, बडे पिताजी, उनसे छोटे मंझले पिताजी, और सबसे छोटे मेरे पिताजी थे. बडे और मंझले पिताजी को हम सब बाबा कहकर पुकारते थे.
बडे पिताजी बडे ही मेहनती और सिधे सरल स्वभाव के इंसान थे. वे सुबह से शाम तक खेती के कामोमे जुटे रहते थे. अपने कामसे काम रखना, दुसरोसे कोई वास्ता नही होता था. उनके पास भी हमारे बराबरी का ही जमीन जुमला था. उन्होने एम. पी. के होशंगाबाद जिल्हे से धौलपूर गाँव के समृध्द किरार परिवार के लडकी को ब्याहकर लाये थे. उनका सौ साल पहले मध्य प्रदेश का महाराष्ट्र मे होनेवाला पहला सामाजिक ब्याह संबंध था. बैल गाडी से तीन दिन धौलपूर जाने को लगते थे. आठ दस दिन मेहमानी करके फिर तीन दिनोमे बैल गाडीसे गाँव वापीस आना होता था. बडी माँ और बडे पिताजी पुरे पंधरा दिन की फुरसत लेकर ही धौलपूर गाँव जाते थे. उनके पंधरा दिनो का खेती ढोर बछेरो का चार्ज मेरे पिताजी को ही संभालने पडता था. मै तो उम्र से छोटा था. परंतु मुझे भी कुछ छोटे मोटे कामो मे पिताजी को मदत करनी पडती थी.
हमारी बडी माँ देखने मे गौरवर्णिय और काफी समझदार थी. खाते पिते सधन परिवार से आयी थी. किलो भर सोना चांदी शरीर पर दिन रात पहनकर रखती थी. परंतु फिर भी उन्हे एक बातका समाधान नहीं था. उनका कोई वारिस नहीं था. दस पंधरा साल बित गये थे. उन दोनो के जिवन मे निराशा बढ रही थी. फिरभी उन्हे एक आशा की किरन दिख रही थी. उनके छोटे भाई, मेरे पिताजी के घर अगर बच्चा हुआ तो उसे गोद लेना.
मेरे माताजी को जब पहला लडका (मेरा बडा भाई) हुआ, तो बडे पिताजी और बडी माँ ने उस लडके को मनमे दत्तक लेनेकी ठान ली थी. लेकिन मेरी माँ इस बात के लिये तैयार नही थी. क्योंकी उसे आगे लडका - लडकी क्या होगा उसकी शाश्वती नही थी. मेरे पिताजी बच्चे को बडे पिताजी के घर दत्तक देने की जिदपर अडे थे. मेरी मंझली माँ को भी कोई बच्चा नहीं हुआ था. वह भी बिना बच्चों वाली माँ थी. यह बच्चा अगर बडो के घर गोद चला गया तो अपन भी बिन बच्चों वाली माँ हो जानेके डरसे मेरी माँ बडे ही बिकट संकट मे फस गयी थी.
आखिर उन सबके दिलकी पुकार भगवान ने सुन ही ली. दो साल बाद मेरा जन्म हुआ. तब कही उन सब लोगोंको लगा की इस संसार मे भगवान का अस्तित्व भी है. मेरे बडे भाई को मेरी बडी माँ बडे धुमधाम से उनके घर ले गयी और उसे खुदका बच्चे जैसा स्विकार करके उससे व्यवहार करने लगी. समाज के लोगो को पक्के रसोई की पंगत दियी गयी. मेरा बडा भाई भी उन दोनोके साथ घुल मिल गया. इधर मै पिताजी के घरमे सबका प्यारा दुलारा बन गया.
To be continued...........
धन्यवाद.
श्री रामनारायणसिंह खनवे. 🙏🙏🙏
Very interesting
जवाब देंहटाएंफीर आगे क्या हुआ