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"मैने जिना सिख लिया" (1) मेरी यादे" से जुडी जिवन की सच्ची घटनाये. भाग 1(वन)

           मेरे प्यारे मित्रो, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया, वह मनुष्य प्राणी उनके लाईफ को अपने अपने तरिके से ही जिते रहते है. हमारे जिवन के, दिन ब दिन बढते हुये आयु को हम पूरा कर लेते है. कोई भी इससे छुटा नही और कभी छुट भी नही सकेगा. इन बातोसे हर इन्सान जानकर भी अनजान सा बना रहता है. क्योंकी वह, इन बातो से दुःखी नही होना चाहता.             परंतु मेरी "ममेरी बडी बहन" जिसका अभी अभी दस दिन पहले स्वर्गवास हो गया, वह अनपढी रहकर भी हम सब को, "जिंदगी जिने" की सिख देकर स्वर्ग को सिधार गयी. किसी को भी उसने इन बातो की, कभी भनक भी नही आने दियी. मै जब उसके बारे मे सोचता हूँ तो, मुझे मेरे और उसके बचपन के उन दिनो की याद आने लगती है, जब उसकी उम्र  सात आठ साल की और मेरी चार पाँच की होगी. उस समय मुझे छोटी दो बहने थी. एक की उम्र तीन साल की तो दुसरी एक साल की होगी. उन दिनो मेरे घरमे बच्चों की देखभाल के लिये कोई भी बडा बुजुर्ग सहाय्यक  नही था. मेरी इस बडी ममेरी बहन की बचपन मे ही माँ गुजरने के कारण, मेरी माँ उसे अपने साथ, घर ले आयी...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 18 (अठारह) : (सत्य घटनाओ पर आधारित) मेरी हायस्कूल की पढाई.......(Part One)

          मेरी हायस्कूल की पढाई.......            प्यारे पाठको, पिछले भागमे हमने देखा, बडे पिताजी के बाडी मे का खल्ला, उनका घोडा, उसी तरह हरिनी गाय के बारेमे की यादो की जानकारी लियी. आज की यादोमे, मेरे हायस्कूल की पढाई के बारेमे कुछ बाते जाननेकी कोशिश करेंगे.              मेरे बडे भाई और उनके साथी बच्चों ने कक्षा आठवी पास करने के बाद हमारे गाँव के तहसिल वाले शहर के हायस्कूल  मे पिछले वर्ष ही कक्षा नऊ मे प्रवेश ले लिया था. जब मै कक्षा नऊ मे गया तब वे सब लोग कक्षा दसवी मे पहूँच गये थे. मुझे प्रवेश के बारेमे जादा सोचना नही पडा. अनासायास ही मेरा उनके ही हायस्कूल मे कक्षा नऊ मे प्रवेश कर दिया गया था. सो मै उन लोगोंके पिछे पिछे कक्षामे जाने लगा. पढाई शुरू हो गयी थी.  मेरे बडे भाई और उनके साथी बच्चों ने स्कूल वाले गाँव मे ही किराये से रूम कर लियी थी. उस रूम पर हम सब बच्चे अपने हाथसे खाना पकाकर खाते थे. सारा काम हमे खुद ही करना पडता था. हम दोनो भाई साथ ही रूम पर रहते थे. दोनो ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 17 (सतराह) : (सत्य घटनाओ पर आधारित): मेरे बडे पिताजी की बाडी और उसका व्यवस्थापन (मेरे बचपन की घटनाये) (Part Two)

      मेरे बडे पिताजी की बाडी और उसका व्यवस्थापन              प्यारे पाठको, इसके पहले हमने देखा की मेरे बडे पिताजी के बाडीमे हम दोनो भाई घोडे को पानी पिलाने ले जाते थे. कभी कभार मोट भी हकालते थे. इस प्रकार के काम करने मे हम दोनो भाईयो को आनंद मिलता था.                घोडे का काम सिर्फ बडे पिताजी को ही होता था. जब भी उनको बाकी खेतोमे जानेका काम होता तब वे घोडे पर सवार होकर ही खेतो मे से  चक्कर मारकर आते थे. बाकी  समय मे घोडा खल्लेमे ही बंधा रहता. हम दोनो भाईयो को घोडे पर बैठनेका शौक हो जानेसे  हम उसके चारा पानी के तरफ विशेष ख्याल देते रहते थे. सुबह शाम दोनो टाइम घोडेको पानी पिलाने का पूण्य हम दोनो भाई कर ही लेते थे. साथ मे उसपर बारी बारी से सवार होकर उसे बाडीके चारो धुरेसे दौड लगाने लगाते. घोडे का भी मुड होता है. उसका मुड होनेपर ही वह हमे धुरेसे दौड लगाने मे साथ देता था. उसका मुड नही रहनेपर उसने कई बार जमिन पर गिरानेका काम भी किया था. तबसे ही हम दोनो भाई घोडे के चाल चलन परसे उसका मुड...

मेरी यादे (Meri Yaden) :- भाग 16 (सोलाह) : मेरे बडे पिताजी की बाडी और उसका व्यवस्थापन ( मेरे बचपन की यादे) (Part One)

मेरे बडे पिताजी की बाडी और उसका व्यवस्थापन    ( मेरे बचपन की यादे)           प्यारे पाठको,  इसके पहले के भागमे मेरी यादोमे हमने देखा की, मेरी गाँव की और पासवाले गाँव के स्कूल की पढाई किस तरह हुयी. हमने वहां कहां तक और कैसे पढाई कियी, इस बातको जाना. आज हम  बडे पिताजी की गाँव के नजदिक के बाडी (खेती) का व्यवस्थापन किस तरह का था, इस बारेमे मेरी यादों के जरिये जानने का प्रयत्न करेंगे.            मेरे बडे पिताजी ने हमारे गाँव के निकट रही वाली, चार एकड के नजदिक पास की जमिन, मेरे बडे भाई साहाब के नाम पर, हम एक दो साल उम्र के होंगे उस वक्त ही खरिद रखी थी. हम जब चार पाच सालके हुये तबसे उस बाडी(खेती) मे जाना आना करते थे. खेलने को भी उसी बाडीमे जाते थे.  कोई भी खुली जगह पर करने वाले कार्य हो तो परिवार के सब  लोग बाडी को ही माध्यम बनाते थे. मेरे बडे पिताजी ने बाडी मे एक बडा सा कुआँ भी बना रखा था. सबसे पहले कुँवे पर बैलो से खिचकर चलने वाली मोट लगाकर रखी थी. मोट से भरके लाया हुआ कुँवे का पानी हम लोग मिरची गेहू जैसे फस...

मेरी यादें ( Meri Yaden) :- भाग 15 (पंधराह)(सत्य घटनाओ पर आधारित) : पास वाले गाँव के स्कूल की मेरी पढाई.........(Part Two)

           पास वाले गाँव के स्कूल की मेरी पढाई.........           प्यारे पाठको, कल हमने देखा की, हम बच्चे पास वाले गाँव के स्कूल मे पढाई करने पैदल ही जाते थे. हमारे पास उस समय खुद की सायकल भी नही थी. कभी कभार प्रायव्हेट गाडी वाले हमे मोफत मे स्कूल वाले गाँव बैठाकर ले जाते थे. यह सब  समय 1957 से 60 के दरम्यान की घटनाये है.            हमारे स्कूल के गाँव मे से एक नदी बहते गयी थी. उस नदी पर हम बच्चे दो बजे की छुट्टीमे हर रोज खानेके डबे लेकर जाते, और खाना खाते थे.   उतना समय हम बच्चों के लिये बडा ही मनोरंजक  होता था. बरसात के दिनोमे नदी को बहूतही पानी बहते रहता था. नदी पर से जाने वाला पूल बहूतही कम उचाई वाला रहनेसे पूल के उपरसे महिनो  पानी बहता रहता था.                हमारे स्कूल मे हर शनिवार के दिन सुबह नऊ बजे के बाद हिंदी भाषा विकास के लिये पूरे स्कूल के बच्चों और टिचर मिलाकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता था. वहां पर ...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 14 (सत्य घटनाओ पर आधारित) : पास के गाँव की मेरी पढाई : (1957 से 60 के दरम्यान की घटनाये) (Part One)

      पास के गाँव की मेरी पढाई  :  (1957 से 60 के दरम्यान की घटनाये)             प्यारे पाठको, इसके पहले के भागमे हमने गाँव के स्कूल की मेरी पढाई  कैसे हुयी यह देखा. अब हम पासवाले गाँव को पढने जाकर उस समय हमारे साथ कौनसी घटनाये घटी उन सबको याद करेंगे.              मैने गाँव के स्कूल मे कक्षा चार तक की पढाई करनेके बाद हमारे गाँव से दो कोस की दुरीपर के गाँव के स्कूल मे कक्षा पांच से आठ तक की पढाई की. हमारे गाँव मे तब कक्षा चार के बाद की कक्षाये नही थी. उस जमाने मे मेरे बडे भाई जो मुझसे अगली कक्षामे पढते थे,  उनके साथ और चार बच्चे भी पढते थे. मेरे साथ पढनेवाले एक दो ही बच्चे थे. कक्षा पांच मे वह दोनोभी फेल होकर घर बैठ गये थे. मै पास होकर कक्षा छह मे गया और मेरे भाई के साथ के पढनेवाले दो बच्चे मेरे साथीदार बन गये थे.             कक्षा पांच से हमारी अंग्रेजी के सब्जेक्ट की पढाई शुरू हुयी थी. उसी तरह हिंदी भाषा की भी पढाई होती थी. कक्...

मेरी यादें (Meri Yaden) :- भाग 13 : (सत्य घटनाओ पर आधारित) : मेरी गाँव के स्कूल की पढाई.......(यादे बचपन की : 1954 से 57 तक का समय).

   गाँव के स्कूल की मेरी पढाई.......         प्यारे पाठको, मेरे बचपन की यादो मे आज हमे याद आ रहे है गाँव के स्कूल की पढाई के वो दिन, जो  मेरे लिये बहूतही यादगार बने हुये है. उन दिनो की याद आते ही मुझे बडे ही आनंद की अनुभूती होते रहती है.         मेरी उम्र सात साल की होनेपर पिताजी ने गाँव के मराठी स्कूल मे मेरा पहली कक्षा मे प्रवेश कर दिया गया था. उस जमाने मे मुझे स्कूल जानेकी बहूतही उत्सुकता थी. उस समय मेरे टिचर के लडके के तरफ स्कुल की घंटा बजानेका काम दिया गया था. मुझे स्कूल जाने की जल्दी होनेसे मै उनके लडके को (भाऊको) जल्दी से स्कुल की घंटा बजाने की रट लगाते रहता था. परंतु घंटा स्कूल के समय पर ही बजाये जाती थी.  कक्षा मे मै बाकी बच्चों से टॅलेंटेड होनेसे टिचर हर जगह मुझे ही आगे किया करते थे.  कोई बच्चा अगर स्कूल मे नही आता हो तो उस बच्चे के घर जाकर उसका हात पकडकर स्कूल लाने के अधिकार टिचर ने मुझे उस समय दिये हुये थे. मै इस कामके लिये और दो बच्चों की साथ लेकर इस कामको बखुबी निभा लेता था. कक्षा में कुल मिलाकर दस पंधरा ही ...

मेरी यादे :- भाग 12 (सत्य घटनाओ पर आधारित ) : मेरे पिताजी टुरिंग टाॅकिज का काँट्रॅक्ट कैसे लेते थे? (Part Three )

मेरे पिताजी टुरिंग टाॅकिज का काँट्रॅक्ट कैसे लेते थे?                  प्यारे पाठको,  मेरी यादों के पिछले भागमे हमने देखा की, चोरोने बैल गाडी को बिच रास्ते मे कैसे रोक लिया था और फिर पिताजी ने उन्हे कैसे भाग जाने पर मजबूर किया था, यह जाना.                  टुरिंग टाॅकिज के काँट्रॅक्ट मे हर रोज इस तरह के किस्से होनेकी हम लोगों को भी आदत सी बन गयी थी. इसी क्रममे  टुरिंग टाॅकिज पर "सती मदालसा "  नाम की पिक्चर लगायी गयी थी. पिक्चर पौराणिक होनेसे महिला दर्शको की भिड थियेटर पर बढने लगी थी. पुरूष दर्शक पिक्चर देखने कम आ रहे थे. परंतु  आस पासके गाँवो के महिला दर्शको की भिड हर दिन बढते ही जा रही थी. थियेटर के सामने बाहर गाँव से आनेवाली बैल गाडी यो की भिड होते रहती थी.  जिससे पिताजी को बहूत सारा मुनाफा हो रहा था. यह बात कुछ लोगोंको पसंद नहीं थी.  फिरभी कुछ ना बोलते हुये ही हम लोग हर दिन हमारा काम कर रहे थे. क्योंकी हमे पिछे के पिक्चरो के दिनोमे...